स्पेशल स्टोरीः जीवन की अंधेरी राहों में आयुष्मान ने बिखेरा उजाला

देहरादूनः राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण। कहते हैं आंखों की रोशनी का लौटना जिंदगी लौटने से कम नहीं होता। खासतौर पर तब जब संकट में खुद मां-बाप की आंखों की रोशनी हो। जी हां, यहां बात हो रही है खटीमा निवासी 19 वर्षीय दीपशिक्षा की। जिसकी आंखों की रोशनी चली गई थी। लेकिन आयुष्मान योजना के मुफ्त उपचार से उसकी अंधेरी दुनिया फिर से रोशन हो गई।

पिछले दशकों में उस बदनसीबी के कई उदाहरण प्रदेश में मिल जाएंगे जब मधुमेय के प्रभाव के चलते बच्चों तक की आंखों की रोशनी सदा के लिए चली गई। खासतौर आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के सामने तो यह समस्या ज्यादा खतरनाक थी। तब इस बेवशी को खराब किस्मत का लाबादा ओढ़ाया जाता था। और पीड़ित के सामने होती थी एक ऐसी दुनिया जहां अंधेरे के सिवा कुछ नहीं होता था। लेकिन समय बदला और वह बेवशी भी अब बेदम हो चुकी है।
खासतौर पर जब से आयुष्मान योजना प्रदेश में हर एक जरूरतमंद के साथ खड़ी हुई लोगों की कई समस्याएं हल हो गई हैं। इसमें वह अंधेरा भी छंटा है जो नई पीढ़ी के जीवन तक काला कर देती थी।

एक किस्सा खटीमा निवासी मेघनाथ की 17 वर्षीय पुत्री दीपशिखा का है। जो कुछ समय पूर्व मधुमेय से पीड़ित हुई और उसकी आंखों की रोशनी चली गई। किसी बच्ची की आंखों की रोशनी अचानक चले जाना मां-बाप के लिए
किसी बज्रपात से कम नहीं था। आराध्य से अस्पतालों तक चौखटों के चक्कर मानो नसीब बन गए थे।

लेकिन बदले वक्त का अपना अलग प्रभाव है। आयुष्मान योजना से उप जिलाचिकित्सालय में दीपशिखा का इलाज हुआ। और अंधेरी हो चुकी दुनिया फिर से रोशन हो गई है। दीपशिखा की मां बताती हैं कि डाक्टरों ने पहले शूगर कम किया और उसके बाद पहले दायीं और फिर एक माह बांईं आंख का ऑपरेशन हुआ। अब उनकी बेटी फिर से देखने लगी है। वह कहते हैं कि इस खुशी को वह शब्दों में तो बयां नहीं कर सकते हैं। मां पिता समेत सभी परिजन इस मदद को उपकार मानते हुए केंद्र व राज्य सरकार आभार जता रहे हैं।

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