भाई जी मैंने बोला था ना, एक भी प्रोजेक्ट नहीं बचेगा

उफनाती नदियों के इस मौसम में मनोज जुयाल की याद आ जाती है। उत्‍तरकाशी के पास गंगोरी में उसका ठिकाना है। पता नहीं कब वह अपने घर पौड़ी से असीगंगा नदी के किनारे आकर टिका। नदी से मछली पकड़कर बेचना उसकी गुजर बसर का साधन है। चूंकि खूबसूरत असीगंगा घाटी हमारी सबसे पसंदीदा सैरगाह रही है, तो जाहिर है कई बार गंगोरी में मनोज से मुलाकात हो जाती। दुबला शरीर, सांवला रंग, बिखरे बाल और बेतरतीब पहनावे से वो पूरा फक्‍कड़ नजर आता है। उसकी ऐसी हालत देख स्‍थानीय लोग उसे झिंगरू पुकारते। लेकिन श्रमजीवी और तेज दिमाग होने के कारण लोगों में उसकी खास पहचान है। एक बार उसने मुझे अपना कमरा दिखाया, जो उसकी तरह ही बेतरतीब था। लेकिन वहां एक कम्‍प्‍यूटर, विज्ञान की किताबें और कुछ खास उपकरण देख मैं चैंक गया। बोला- भाई जी मैंने एमएससी किया है और कैमिस्‍ट्री की आवर्त सारिणी में कुछ बदलाव किए हैं। इस बारे में पीजी कॉलेज और इंटर कॉलेज वालों से बात की पर उन्‍होंने मुझे चलता कर दिया। चूंकि कैमिस्‍ट्री में अपना हाथ पहले से ही तंग था, इसलिए अपन इस मामले पर ज्‍यादा नहीं बोला।

खैर, एक रोज घाटी से लौटते हुए गंगोरी में मनोज से मुलाकात हुई। उसने हमारे लिए मच्‍छी भात तैयार करवाया था। बातों ही बातों में उसने कहा -भाई जी इन तीनों में से एक भी प्रोजेक्‍ट नहीं बचेगा। मैं दिन के पंद्रह घंटे इसी नदी में बिताता हूं, और इसका मिजाज मुझे अच्‍छी तरह मालूम है। बरसात में इसके पानी में मिट्टी की गंध सूंघ कर ही बता सकता हूं कि कितनी दूर बारिश हुई है या बादल फटा है। फिर उसने मानसून के समय आने वाले गर्म बादलों और हिमालयी इलाके से उठने वाले ठंडे बादलों के घर्षण की विनाशकारी थ्‍योरी पेश की। हालांकि मच्‍छी भात के स्‍वाद में ये थ्‍योरी अपने सिर के ऊपर से निकल गई।
करीब एक साल बाद 2 अगस्‍त 2012 की रात को आसमान बरस रहा था। असीगंगा के पूरे कैचमेंट एरिया में भारी बारिश हुई। नदी में उफान आ गया। रात ही खबर आई कि गंगोरी में भारी तबाही हो रही है। सुबह वहां पहुंचे तो तबाही के निशान शरीर में सिहरन पैदा कर गए । गंगोत्री हाईवे पर बना पुल, बाजार का आधा हिस्‍सा, फायर ब्रिगेड की यूनिट, वन विभाग का पार्क नजर नहीं आ रहे थे। बस मलबे के ढेर और असीगंगा की उफान मारती लहरें दिख रही थीं। नदी ने अपने 32 किमी के रूट में तटवर्ती इलाके का पूरा भूगोल बदल दिया था। संगमचट्टी का अवशेष भी नहीं बचा। सड़क कई हिस्‍सों से बह गई और केलसू क्षेत्र के सभी गांव अलग थलग पड़ गए। जबकि तीनों प्रोजेक्‍ट के साथ करोड़ों रुपए की संपत्ति मलबे का ढेर बन चुकी थी। इनमें काम कर रहे असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का कहीं कोई डाटा बेस नहीं था। लिहाजा ये भी पता नहीं लगा कि कितने लोग मारे गए हैं। हां गंगोरी में दो पुलिसकर्मियों के बहने की सूचना दर्ज हुई।
इस बाढ़ से भागीरथी का जलस्‍तर बढ़ा और उत्‍तरकाशी में भी भारी तबाही हुई, बाजार झूलापुल के साथ ही कई इमारतें तिनके की तरह लहरों में समा गई । गंगोरी में हम तबाही का जायजा ले ही रहे थे कि मनोज से सामना हुआ । वो थका हुआ था। पता चला कि उसने नदी में उफान आने से पहले अपने आस पास के सभी लोगों को जगाकर ऊंचाई पर सुरक्षित जगह जाने को कहा। फायर स्‍टेशन पर पुलिसकर्मियों को भी आगाह करने गया, लेकिन वे समय पर अपनी जगह नहीं छोड़ सके। मनोज सबसे बाद में सुरक्षित ठिकाने की ओर भागा। पीछे से नदी का पानी पुल पर चढ़ने के बाद सड़क की ओर बह रहा था, जिसके आगे वो भाग रहा था। किसी तरह पहाड़ी पर ऊपर की ओर चढ़कर बच गया। मनोज के इस कारनामे ने करीब 24 लोगों को जीवनदान दिया। कुछ देर बातचीत के बाद वो जोर से बोला-भाई जी मैंने बोला था ना एक भी प्रोजेक्‍ट नहीं बचेगा।
वरिष्ट पत्रकार पुष्कर रावत जी की कलम से साभार

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