देहरादून। सूबे़ मेें काफी हद तक आजीविका का चरखा घुमाने वाली महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना यानी मनरेगा में धियाडी भले ही कम मिलती हो लेकिन हाल के वर्षों में प्रदेश की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के बेहतर प्रबंधन के कारण यह योजना गांवों की आजीविका का बड़ा आधार बन गई है। अपवाद स्वरूप छोड़ दें तो मनरेगा के जाॅब कार्ड धारकों को 100 या उससे अधिक दिन का भी काम मिला है। साल में सौ दिन ही सही लेकिन इसके परिणाम अपेक्षाओं से अधिक बेहतर ही आए हैं। सौ दिन के काम का पैसा आया तो गांवों की आर्थिकी का चरखा धीरे ही सही लेकिन धूमने लगा। जिस जाॅब कार्ड धारक को पहले साल भर में हजार दो हजार का भी काम नहीं मिलता था, उसके खाते में 20 हजार से अधिक रूपए आने लगे। तो बेपटरी हुई आर्थिकी भी संभलने लगी। सीएम त्रिवेंद्र के निर्देशन में एक भरोसा जगा कि ज्यादा नहीं तो सौ दिन तो काम मिल ही जायेगा। सीएम त्रिवेंद्र ने अब गांवों की आर्थिकी को और सबल बनाने के लिए एक शानदार पहल की है, जिससे मेहनतशों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
गत दिवस मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मनरेगा के कार्य दिवस में 50 दिनों का यानी पूरे पचास फीसद का जो इजाफा किया तो उससे मेहनतकशों के चेहरे खिल उठे हैं। खुशी का कारण यह है कि अब उन्हें साल भर में ज्यादा काम मिलेगा तो ज्यादा काम का भुगतान भी मिलेगा। कुल जमा बात यह है कि पहले जिस जाॅब कार्ड धारक को साल भर में सौ दिन के काम के बदले तकरीबन 20000 से अधिक का भुगतान होता था, अब उसे इसी मनरेगा से 30000 से अधिक का भुगतान होगा। यानी ये 50 दिन गांवों की आर्थिक सबलता की दिशा में मील का पत्थर होंगे।
बता दें कि राज्य में मनरेगा के तहत कुल 12.19 लाख जॉब कार्ड धारक हैं। जिसमें से 67.19 सक्रिय जाॅब कार्ड धारक हैं। और इस पर भी और अच्छी बात यह है कि कुल जाॅब कार्ड धारकों में से 53.65 महिलाएं हैं। यानी सिर्फ चूल्हे चैके तक सीमित रहने वाली मातृशक्ति अब खुद भी आर्थिकी भी बखूबी संभाल रही है। पौड़ी से पंचायत प्रधान संगठन के अध्यक्ष कमल रावत बताते हैं कि त्रिवंेद्र सिंह रावत सरकार ने मनरेगा में 50 कार्य दिवस बढ़ा एक बहुत बड़ा काम किया है। इसके लिए उनकी जितनी तारीफ की जाए कम है। वह बताते हैं कि घर गांव की स्थितियों को एसी कमरों में बैठकर नहीं समझा जा सकता है। लेकिन सीएम त्रिवेंद्र जमीनी नेता हैं वह पहाड़ की विकट परिस्थितियों से वाकिफ हैं। प्रदेश सरकार की ओर बढ़ाए गए यह 50 कार्य दिवस गांव की आर्थिकी को सबल करने में किसी संजीवनी से कम नहीं होंगे। कई परिवारों का तो आजीविका का आधार ही मनरेगा है। उनके लिए तो यह इजाफा किसी बड़े अवसर से कम नहीं है।