सिंगोरी न्यूजः मामला सूबे की राजधानी देहरादून का है। जहां अन्य जनपदों की अपेक्षा स्वास्थ्य सेवाओं को दुरूस्थ और सुदृढ़ माना जाता है। और अपेक्षाकृत तो हैं ही। लेकिन जब जिम्मेदारान मोटी तनख्वाह के बाद भी अपनी जिम्मेदारियों से भागने की मानसिकता रखते हों तो हर माह करोड़ों के खर्च से चलने वाली स्वास्थ्य सेवाएं भी जानलेवा हो जाती हैं। बता दंे कि पिछले माह यानी जून में एक गर्भवती महिला के परिजन प्रसव के लिए अस्पतालों में धक्के खाते हैं। क्या सरकारी क्या प्राइवेट, कहीं भी उन्हें ठीक रिस्पांस नहीं मिला। और आखिर में दून अस्पताल में प्रसूता ने इस बेदर्द दुनियां से अलविदा कह दिया। परिजन कहते हैं यदि सही उपचार या सही सलाह उन्हें समय पर मिलती तो जिंदगियां बच जाती।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक राजधानी देहरादून में गत दिनो एक महिला को परिजन डिलीवरी के लिए पहले उसे कोरोनेशन अस्पताल में ले गए। वहां भी उसे भर्ती नहीं कराया गया। वहां उन्हंे गांधी अस्पताल भेजा गया। लेकिन वहां से भी डाक्टरों ने उसे रैफर कर दिया। फिर परिजनों ने एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया। लेकिन वहां बुखार की शिकायत पर डाक्टरों ने उसे दून अस्पताल में रैफर कर दिया। और इसी भागा दौड़ी मंे दून अस्पताल के आईसीयू में उस महिला ने दम तोड़ दिया।
डिलीवरी के लिए स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ लेने से लेकर आईसीयू में मौत की आगोश का तक यह सफर इस प्रसूता ने जितनी जल्दी तय किया, व्यवस्थाओं की तरफ से उतनी ही देरी हुई। आखिर कार गर्भवती महिला ने इस दुनिया को अलविदा कहा और इस घटनाक्रम ने निसंदेह ही लापरवाह व्यवस्था के मुहं पर जोरदार तमाचा भी जड़ दिया। परिजनों ने तो जितनी मिन्नतें करनी थी वह हुई भी। लेकिन अस्पतालों के अनदेखी ने एक हंसती खेलती जिंदगी को सदा के लिए खामोश कर दिया।
सवाल यह उठता है कि इस महिला की मौत के लिए कौन जिम्मेदार हैं। सूबे की राजधानी में अस्पतालों के चक्कर काटते काटते उसकी जिंदगी का सफर ही पूरा हो गया। अपनी इज्जत बचाने के लिए प्रशासन ने इस मामले में मजिस्टीयल जांच तो बिठाई। लेकिन उसकी रिपोर्ट और भी शर्मसार करने वाली आई। रिपोर्ट में बताया जा रहा है कि घटनाक्रम का उल्लेख तो जरूर है लेकिन उस वक्त कौन डाक्टर या अन्य स्टाफ ड्यूटी पर था इसका कहीं जिक्र नहीं है। अंधेरी नगरी में इस तरह की भी मजिस्टीयल जांचें होती हैं इस वाकये से यह भी पता चल गया है।
बहरहाल अब शासन ने महानिदेशक स्वास्थ्य से घटना के दौरान अस्पतालों में उपस्थित डॉक्टरों के संबंध में जानकारी मांगी है। ताकि उनकी जबाबदेही तय की जा सके। जाने वाला तो चला गया, लेकिन इस मामले में सख्त कार्रवाई होती है तो फिर किसी प्रसूता को इस तरह से अस्पतालों की दौड़ नहीं लगानी पड़ेगी जिसमें दांव पर जिंदगी होती है और सामने होती है तो बस हार।