अल्मोड़ा। विश्व प्रसिद्ध जागेश्वर धाम में पूजा अर्चना के लिए भक्तजनों का तांता लगा है। यहां बीते शनिवार को सर्वाधिक 23 पूजाएं हुईं। कुमाऊं समेत अन्य कई महानगरों से भक्तजन पूजा के लिए समय ले रहे हैं। पूजा की आॅनलाइन व्यवस्था भी है। जागेश्वर मंदिर प्रबंधन समिति के प्रबंधक भगवान भट्ट के मुताबिक जागेश्वर धाम में शनिवार को 15 रुद्राभिषेक और आठ पार्थिव पूजाएं हुईं। दिल्ली, हल्द्वानी, नैनीताल, बरेली, उत्तर प्रदेश, गाजियाबाद, प्रयागराज, राजस्थान आदि स्थानों से श्रद्धालू बुकिंग करा रहे हैं। ऑनलाइन पूजा का भी पूर्व की तरह ही प्रावधान है। समुचित व्यवस्थाओं के लिए शासन प्रशासन ने सख्त निर्देश जारी कर दिए हैं।
इतिहास पर नजर डालें तो इन मंदिरों के निर्माण गुप्त साम्राज्य की झलक भी दिखलाई पडती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इन मंदिरों के निर्माण की अवधि को तीन कालों में बांटा गया है। कत्यूरीकाल, उत्तर कत्यूरीकाल एवं चंद्र काल। बर्फानी आंचल पर बसे हुए कुमाऊं के इन साहसी राजाओं ने अपनी अनूठी कृतियों से देवदार के घने जंगल के मध्य बसे जागेश्वर में ही नहीं वरन् पूरे अल्मोडा जिले में चार सौ से अधिक मंदिरों का निर्माण किया जिसमें से जागेश्वर में ही लगभग २५० छोटे-बडे मंदिर हैं।
जागेश्वर को पुराणों में हाटकेश्वर और भू-राजस्व लेखा में पट्टी पारूणके नाम से जाना जाता है। पतित पावन जटागंगा के तट पर समुद्रतल से लगभग 6200 फुट की ऊंचाई पर स्थित पवित्र जागेश्वर की नैसर्गिक सुंदरता अतुलनीय है। कुदरत ने इस स्थल पर अपने अनमोल खजाने से खूबसूरती जी भर कर लुटाई है। लोक विश्वास और लिंग पुराण के अनुसार जागेश्वर संसार के पालनहारभगवान विष्णु द्वारा स्थापित बारह ज्योतिर्लिगोंमें से एक है।
पुराणों के अनुसार शिवजी तथा सप्तऋषियों ने यहां तपस्या की थी। कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं जिसका भारी दुरुपयोग हो रहा था। आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य जागेश्वर आए और उन्होंने महामृत्युंजय में स्थापित शिवलिंग को कीलित करके इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की। शंकराचार्य जी द्वारा कीलित किए जाने के बाद से अब यहां दूसरों के लिए बुरी कामना करने वालों की मनोकामनाएंपूरी नहीं होती केवल यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएं ही पूरी हो सकती हैं। बहरहाल लाॅकडाउन के बाद बंद पड़ी धार्मिक गतिविधियां फिर से बढ़ने लगी हैं।