सिंगोरी न्यूजः पंचायत प्रतिनिधि, यानी ग्राम पंचायत सदस्य, प्रधान, बीडीसी और जिला पंचायत के मेंबरान, ब्लाक प्रमुख, जिला पंचायत अध्यक्ष। यह त्रिस्तरीय पंचायत राज व्यवस्था का ढांचा है। त्रिवेंद्र रावत सरकार ने इस ढांचे में शामिल पंचायत प्रतिनिधियों की एक बड़ी मुश्किल आसान कर दी है। अब पंचायतों के प्रतिनिधि अपनी आजीविका के लिए अपना कारोबार कर सकेंगे। इसके लिए प्रदेश भर में सीएम त्रिवेंद्र की सराहना हो रही है। और जो स्वाभाविक भी है।
गौरतलब है कि वर्ष 2016 में जब कांग्रेस सत्ता में थी। तो तब पंचायत राज व्यवस्था में एक अजीब सा संशोधन हुआ था। जिसने सीधे तौर पर पंचायत प्रतिनिधियों की आजीविका प्रभावित कर दी। वह यह कि पंचायत प्रतिनिधि लोकसेवक की श्रेणी में माने गए। उस व्यवस्था में साफ था कि पंचायत प्रतिनिधि किसी तरह की ठेकेदारी या अन्य कोई ऐसा काम नहीं कर सकता जो अधिकृत हो। रोजगार के लिए ध्याड़ी मजबूरी के अलावा अन्य विकल्प बंद हो गई थे। इस व्यवस्था ने पंचायत प्रतिनिधियों के सामने रोजगार का संकट पैदा कर दिया। पंचायत प्रतिनिधियों ने जाहिर तौर पर तब इसका विरोध जरूर किया, लेकिन उनकी नहीं सुनी गई।
गत माह पौड़ी विधायक मुकेश कोली, लैंसडाउन विधायक दलीप रावत, देवप्रयाग के विनोद कंडारी आदि नेताओं ने इस बाबत प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत से मुलाकात कर सारी स्थितियों के साथ ही इस व्यवस्था में व्याप्त दिक्कतों और उससे आने वाली परेशानियों को सामने रखा। इसके लिए इन नेताओं ने सीएम को बाकायदा ज्ञापन सौंपा। पौड़ी विधायक मुकेश कोली ने एक मुलाकात में बताया कि पंचायत से जो लोग चुनकर आते हैं अधिकांश के रोजगार का साधन छोटे मोटे काम काज ही होते हैं। कांग्रेस सरकार ने उनके हकों पर तुषारापात कर दिया था। उनके सामने तो आजीविका संकट खड़ा हो गया है। अब हमारी सरकार ने उनकी रोटी को उन्हें सौंप दिया है जो कांग्रेस ने छीन ली थी। इसके लिए सभी की ओर से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत का तहेदिल से अभार है। जाहिर तौर पर जब प्रतिनिधि के लिए काम काज प्रतिबंधित कर दिए हैं तो उसकी आजीविका चलेगी कैसे। जानकारों का मानना है कि एक लिहाज से यह परिस्थितियां पंचायत प्रतिनिधियों को जबरदस्ती भ्रष्टाचार की ओर धकेलने से अधिक कुछ नहीं थी। पता नहीं कांग्रेस ने क्या सोच कर पंचायत राज व्यवस्था में इस तरह के प्रतिबंध किए। जनपद से ब्लाक और ब्लाक से लेकर गांवों से भी यह विरोध की आवाज उठी लेकिन नक्कारखाने की तूती ही साबित हुई।
अब त्रिवेंद्र सरकार ने इस समस्या का समाधान कर दिया है। उनकी आजीविका के लिए रोजागार की राहें खोल दी गई हैं। मंत्रीमंडल की बैठक में त्रिवेंद्र रावत ने कांग्रेस के समय बनी उस व्यवस्था को खत्म कर दिया है जिसने पंचायत प्रतिनिधियों की रोटी छीन ली थी। इस फैसले से प्रदेश भर के पंचायत प्रतिनिधियों में खुशी की लहर है। उक्त विधायकों ने भी सीएम का आभार जताया है जिन्होंने प्रतिनिधियों की आजीविका के लिए ज्ञापन सौंपा था। विधायकों का कहना है कि प्रदेश सरकार का यह कदम सराहनीय है।