Perfectionism: राजनैतिक इच्छा शक्ति हो, तो ही खुलती हैं जनहित की राहें

प्रदेश के नियंता या नेता पूर्व से ही जनहित के कामों में आधे अधूरे प्रयासों या अनिच्छा से होने वाली कोशिशों के लिए जाने जाते रहे हैं। पुरानी व्यवस्थाओं के परिणाम बताते हैं कि बात चाहे निर्माण की हो या शिक्षा क्षेत्र की, महज खानापूर्ति ही ज्यादातर की फितरत में पाया गया।। लेकिन छात्र हित में प्रदेश के शिक्षा मंत्री डा धन सिंह रावत ने अब जो व्ययवस्थाएं दी हैं उस प्रबंधन को भावी पीढ़ी की समस्या का कंपलीट सोल्यूशन बेशक कहा जाना चाहिए। उसमें कहीं बाल भर का भी तीन पांच तलाशे नहीं तलाशा जा सकेगा।

जी हां, आज इतिहास के पन्नों पर प्रदेश में पहली बार आयोजित हुई अंक सुधार परीक्षा कार्यक्रम की सफलता बहुत ही गर्व के साथ दर्ज हो गई है। जिस समयबद्धता की किसी ने उम्मीद नहीं की रही होगी उससे पहले ही यह दुरूह सा लगने वाला कार्य फाइनल हो गया। दोबारा परीक्षाएं हुई और आगे की पढ़ाई बहुत अधिक छूटने से पहले ही रिजल्ट भी आ गया। यहां पर टाइम मैनेजमेंट के लिए व्यवस्थाओं का साधुवाद करना जरूरी हो जाता है।

परीक्षा सुधार कार्यक्रम या रिचैकिंग की व्यवस्थाओं में पहले क्या होता था या क्या हो पाता था, यह खासतौर पर पुराने लोगों को तो बताने की जरूरत नहीं है। लेकिन नए जिज्ञाषुओं को बता दें कि तब सुधार परीक्षाओं को सप्लीमेंटरी कहा जाता था, चांस भी एक विषय में मिलता था। और झंझट पूरी थी। इसका मुख्य दुर्गुण यह था कि रिजल्ट आते आते तक साल लगभग लगभग गुजर जाता था। पुनः परीक्षा के बाद भी बच्चे के सामने उसी कक्षा में बैठने की विवशता होती थी, जिसमें वह असफल हुआ। यही हाल रिचैकिंग की व्यवस्था का भी था, कि कुछ भी हो जाए साल तो खराब होना ही है। लेकिन अब शिक्षा मंत्री डा धन सिंह रावत के राज में ऐसा नहीं है। खुशी की बात है कि हजारों बच्चों का साल खराब होने से बच गया।
नियति का उपकार मानना होगा कि उच्च शिक्षा के मंत्री भी डॉ. धन सिंह रावत ही हैं। उन्होंने अंक सुधार परीक्षा के जरिए 12वीं में पास हुए 6923 छात्र-छात्राओं के लिए स्नातक कक्षाओं में दाखिले के भी दरवाजे खोल दिए हैं। इसके लिए सरकार दोबारा समर्थ पोर्टल खोलने जा रही है। छात्रों को फिर से दाखिले का अवसर मिल जाएगा।

अब देखिए ना, पहली बोर्ड परीक्षा में फेल होने के बाद जिसने दसवीं पास की वह ग्यारहवी में अब शान से दाखिला लेगा। कक्षा में उन्हीं बच्चों के साथ बैठेगा जिनसे वह पीछे छूट गया था। और कोई ये भी नहीं कह सकता कि अंक सुधार परीक्षा में बारहवीं तो पास कर ली है, लेकिन स्नातक में दाखिले से तो वह इस बार फिर भी रह ही गए। जाइए! कॉलेज कैंपस तुम्हारा इंतजार कर रहा है। इसे कहते हैं समझदारी। युवा पीढ़ी को इस तरह का कंपलीट सोल्यूशन देने वाले दूरदर्शी व कुशल प्रबंधन वाले नेता डा धन सिंह रावत के सम्मान हमारी नौजवान पीढ़ी का सलाम।

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