उत्तराखंड में कभी कोई सबसे कम उम्र का पुलिस अधिकारी बनता है या फिर मुख्य सचिव की कुर्सी पर प्रथम महिला जब विराजती है, या फिर कोई बड़े पद का अधिकारी सेवा से रिटायर होता है तो स्तुतिगान से मीडिया के तमाम माध्यम पट से जाते हैं। अनगिनत गुस्लदस्तों से उनका इस्तकबाल होता है। लेकिन जब वक्त मौके पर उनका इम्तिहान होता है तो मायूसी ही हाथ लगती है।
अब हल्द्वानी के बनभूलपुरा के घटनाक्रम को ही लें, यहां हुए जानलेवा उपद्रव को लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय को जो फीडबैक मिला है वह लापरवाही की हदें लांघती, हैरान करने वाली है यहां जांच में स्पष्ट हुआ है कि प्रशासन की लापरवाही के कारण वनभूलपुरा जल उठा। यानी अगर लापरवाही नहीं होती तो वहां जो हुआ उसे रोका जा सकता था। सवालों में प्रशासन के अधिकारी हैं। सूत्रों के मुताबिक, खुफिया रिपोर्ट ने अतिक्रमण हटाने के अभियान शुरू करने से पहले वहां आबादी क्षेत्र का ड्रोन सर्वे कराने का मशविरा प्रशासन के जिम्मेदार डीएम और एसएसपी को दे दिया था। यह बात अब साफ हो गई है। इंटेलीजेंस की रिपोर्ट में अभियान से पहले पर्याप्त संख्या में पुलिस और पीएसी की तैनाती करने की भी बात कही गई थी। ताकि किसी तरह से हालात बिगड़ने पर रोकथाम के यथा समय प्रयास हो सकें।
खुफिया तंत्र की ओर से अतिक्रमण कर बनाए गए जिस धार्मिक स्थल पर पवित्र किताब के होने या ना होने का पता लगाने को भी कहा गया था। इसके पीछे मंशा यह थी कि यदि अतिक्रमित स्थल पर वह पवित्र पुस्तक हो तो उसे सम्मान के साथ अन्यत्र रखा जाए। लेकिन हैरानी है कि स्पष्ट रिपोर्ट के बाद भी प्रशासन ने ऐसा करने की जहमत नहीं उठाई। नतीजा सबके सामने है। वनभूलपुरा जल उठा है। सीएम कार्यालय से इसकी जांच के निर्देश हुए हैं। बहरहाल मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्वयं प्रभावित क्षेत्र का दौरा कर जांच के आदेश दे दिए हैं। भले ही इसे लकीर पीटना भी कहा जा रहा है। लेकिन इस तरह के घटनाकम की पुनरार्विति ना हो इस पर गंभीरता से सोचा जाना चाहिए।