देहरादूनः यहां चौबीसों घंटे जोखिम में झूल रही हैं जिंदगिंया

देहरादूनः आपदा से होने वाले नुकसान के न्यूनीकरण व निपटने के लिए चिंता जताते हुए एलर्ट मोड के निर्देश देने वाले सीएम धामी निसंदेह ही इस कार्य के लिए साधुवाद के पात्र हैं। ऐसे जानलेवा मौसम में राहत और बचाव को प्राथमिकता तो मिलनी ही चाहिए। चाहे इसके लिए कितने ही मानव संसाधन या अर्थशक्ति क्यों ना व्यय करनी पड़े।

लेकिन सत्ता में बैठे भले मानसों अपने आसपास बन रहे जान के जोखिम के निदान के लिए भी तो अपने इस जंग खा चुके सिस्टम के कान खींचिए। यहां एड़ी से लेकर चोटी का जोर लगाने के बाद भी देहरादून के गीता इनक्लेव के वासिंदों की जिंदगी का जोखिम कम करने की दिशा में कोई उपाय नहीं हुआ। मुन्सीपलिटी से लेकर सीएम पोर्टल तक गुहारों के तमाम पुलिंदे पहुंच गए हैं लेकिन सुनवाई के नाम सिर्फ खानापूर्ति ही हो रही है।

मौसम का एलर्ट यहां गीता एनक्लेव के निवासियों को विशेष रूप जारी किया जाना चाहिए। यहां हर रोज बरसता आसमान यहां जीवन की चुनौतियां दे जा रहा है। आलम यह है कि स्कूली बच्चे स्कूल कैसे जाएं यह चिंता खाए जा रही हैं। बिजली के करंट का खतरा कब क्या दिन दिखा दे कुछ पता नहीं। और यह बात भी शासन से लेकर प्रशासन तक के सामने भी शीशे की तरह साफ है कि सड़क में अतिक्रमण ही समस्या का एकमात्र कारण है। लेकिन पता नहीं किस स्तर पर स्वार्थ का मीठापन अतिक्रमणकारियों की ढाल बना हुआ है।

बहरहाल हालात वहां बेहद जानलेवा हो रखे हैं। जिंदगिंया चौबीसों घंटे जोखिम में झूल रही हैं। लबालब बनी इस अंधेर नगरी की यह सड़क एक हिसाब से देखा जाए तो यमदूतों के नौका विहार का इंतजार कर रही है। जरा इधर भी सोचिए धामी साहब।

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