प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘मन की बात’ का विरोध करने वाले अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव और पंजाब के प्रभारी हरीश रावत आजकल पूरी रौ में हैं। अपने मन की बात या यूं कहें कि ‘उदगार’ व्यक्त करने के लिए वह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘फेसबुक’ का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। एक के बाद एक फेसबुक पर आ रही उनकी पोस्ट का सीधा सम्बंध कांग्रेस की अंदरूनी सियासत से है। हरीश उन मसलों को सार्वजनिक मंच पर उठा रहे हैं जो पार्टी के अंदर की बातें हैं। वह कांग्रेस हाईकमान से मांग कर रहे हैं कि उत्तराखण्ड में विधानसभा चुनाव के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया जाए।
हरीश रावत के बारे में कहा जाता है कि वह कोई भी बात यूं ही नहीं कहते। खासतौर पर सोशल मीडिया में तो कतई नहीं। उनकी कही बात का कोई न कोई मकसद जरूर होता है। इस बार तो हरीश सिर्फ बात कह ही नहीं रहे बल्कि अपनी बात मनाने के लिए कांग्रेस हाईकमान पर दबाव भी डाल रहे हैं। बकौल हरीश उत्तराखण्ड में विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस को अपने मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करना चाहिए। सोशल प्लेटफार्म पर की गई उनकी इस टिप्पणी ने सर्द मौसम में अचानक उत्तराखण्ड का सियासी तापमान बढ़ा दिया है। उनकी इस बात के समर्थन और विरोध में कांग्रेस के दो धड़े आमने-सामने खड़े हैं। हरीश विरोधी कह रहे हैं कि हरीश फिर से मुखमंत्री बनने की फिराक में हैं इसलिए प्रेशर पॉलिटिक्स का दांव चल रहे हैं। एक समय में उनके बगलगीर रहे रंजीत रावत अब हरीश के बयान की पुरजोर मुखालफत कर रहे हैं। जबकि पार्टी के एक बड़े तबके का मानना है कि उत्तराखण्ड में हरीश को आगे करके ही कांग्रेस विधानसभा चुनाव में भाजपा के सामने चुनौती पेश कर सकती है। हरीश की यह टिप्पणी प्रदेश प्रभारी देवेन्द्र यादव के उस बयान के बाद सामने आई है जिसमें उन्होंने उत्तराखण्ड में सामूहिक नेतृत्व के साथ विधानसभा चुनाव लड़ने की बात कही है। जगजाहिर है कि हरीश रावत की सियासी पारी ढलान पर है, पर उनकी महत्वकांक्षा अभी बरकरार है। 72 वर्ष की उम्र में पहुंच चुके हरीश चाहते हैं कि उनकी सियासी पारी का अंत सुखद हो। मुख्यमंत्री रहते हुए दो सीटों से चुनाव हारने के दाग को वह धुलना चाहते हैं। वह कई बार कह चुके हैं कि कांग्रेस की सत्ता में वापसी करवाकर ही उन्हें चैन आएगा। लेकिन सवाल यह भी है कि हरीश् हर बार खुद पॉवर सेंटर क्यों बनना चाहते हैं। अगली पीढ़ी के किसी कांग्रेसी को आगे करके वह अपना बेस्ट क्यों नहीं देना चाहते। हरीश का इतिहास भी रहा है कि जब-जब प्रदेश कांग्रेस में सरकार या संगठन की बागडोर किसी और कांग्रेसी के पास रही है उन्होंने उसकी खिलाफत में झण्डे बुलंद किए हैं। हरीश को लेकर एनडी तिवारी, विजय बहुगुणा, इंदिरा हृदयेश और प्रीतम के अनुभव एक जैसे ही हैं। सीनियर जर्नलिस्ट दीपक फस्र्वाण जी की कलम से