त्रिवेंद्र सरकार की ‘होम-स्टे’ योजना से बदल रही ग्रामीण पर्यटन की तस्वीर

देहरादूनः त्रिवेंद्र सरकार की दूरदर्शी नीतियां राज्यवासियों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव तो ला ही रही हैं साथ ही इन योजनाओं के बूते पहाड़ के लोग पहाड़ में रहकर ही आजीविका भी कमा रहे हैं। ऐसी ही योजनाओं में से एक है होम-स्टे योजना। होम-स्टे योजना विशेषतौर से पहाड़ी जिलों के लिए वरदान साबित हो रही है। इस योजना के तहत अब तक प्रदेशभर में 2200 से ज्यादा होम स्टे का पंजीकरण हो चुका है।
उत्तराखंड में पर्यटन को स्वरोजगार से जोड़ने व पलायन रोकने के उद्देश्य के साथ त्रिवेंद्र सरकार की ओर से होम-स्टे योजना की शुरूआत की गई है। होम स्टे योजना के तहत लोग अपने पुराने घरों में बदलाव कर या फिर नया निर्माण कर योजना का लाभ ले सकते हैं। सबसे अहम बात यह कि होम-स्टे योजना के जरिए सरकार ऐसे नए टूरिस्ट स्पाॅट भी विकसित करने में कामयाब हो पा रही है जहां आज तक पर्यटक नहीं पहुंच पा रहे थे। दूरस्थ गांवों तक जब पर्यटक पहुंच रहे हैं तो उन्हें एक असीम शांति का अहसास तो हो ही रहा है साथ ही उन्हें घर जैसे माहौल की भी अनुभूति हो रही है। यह इस योजना की ही खासियत है कि बाहर से आए लोगों को उत्तराखंड की संस्कृति को समझने का भी मौका मिल रहा है। योजना के जरिए पर्यटक व ग्रामीणों के बीच एक अलग तरह के आत्मीय संबंध विकसित हो रहे हैं।
दीगर है कि राज्य सरकार की ओर से पांच हजार होम स्टे स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है। जिसमें से 2200 से ज्यादा होम स्टे स्थापित किए जा चुके हैं। होम-स्टे में पर्यटकों के लिए एक से छह कमरों की व्यवस्था होनी चाहिए। पंजीकरण के बाद तीन साल तक एसजीएसटी का भुगतान पर्यटन विभाग के माध्यम से किया जाएगा। साथ ही बिजली पानी व भवन कर घरेलू दरों पर लिया जाएगा। पर्वतीय क्षेत्रों में इस सरकार की ओर से 33 प्रतिशत यानि दस लाख का अनुदान और मैदानी क्षेत्रों में 25 प्रतिशत यानि साढ़े सात लाख की सब्सिडी दी जा रही हैै।
सीनियर जर्नलिस्ट दीपक फस्र्वाण जी की कलम से।

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