————- वीरेन्द्र पंवार
जै दिन अंधेरी का यु काळा दिन चौळ जाला,
जै दिन यु खुट्टौ का छाळा मौळ जाला,
मिन भी लाइव औण—!
जै दिन गफ्फा तक पौंछ जाली भूक,
अर पाणी तक पौंछ जाली तीस,
जब उ खौर्यू की कुटेरी ल्हेकि अपणी थौ बिसाला,
मिन भी लाइव औण—!
जीणा ख़ातिर जु लम्बी-लम्बी सड़की नपणा छन,
भड़कदी रूड्यूक घाम पीठी मा ल्हेकी हिटणा छन,
जब उ सुखी-सन्ती अपणा घौर पौंछ जाला,
मिन भी लाइव औण—!
आज ज्यून्दा छन,पर भोळौ पता नी,
टुक्खू पौंछ्या रैनी, पर गोळौ पता नी,
जब उ ये माटा मा दब्या,अपडा जलड़ौ खुज्याला,
मिन भी लाइव औण—!
जै दिन टकटका खड़ा रैला,बेमौत मोर्दरा,
जै दिन मनखी दगड़ा खड़ा रैला, मनखी कद्र कर्दरा,
मनखी कुदरत मा हरेक जीव-जन्तू मोल चिताला,
मिन भी लाइव औण—!
जै दिन एकनसी राला परजा,राजा अर राणी,
जै दिन निरदुन्द राला,धरती,आगास अर पाणी,
ई मुन्था मा सौब मिल-जुली फेर मण्डाण लगाला,
मिन भी लाइव औण—!
आदरणीय वीरेंद्र पवार जी की वाॅल से साभार