उत्तराखंड में के पहाड़ी गांवों में एक बहुत ही शिक्षाप्रद लोकोक्ति प्रचलित है कि अढ़ै अढ़ै कि लाटो अर पढ़ै पढ़ै कि सट। यह कहावत तब बनी जब गांवों में स्कूल तो भले ही नहीं थे लेकिन जिंदगी जीने के ज्ञान और फार्मूलों की कमी नहीं थी। इस कहावत का अर्थ होता है कि किसी को कितना भी समझाओ लेकिन यदि उसे नहीं समझना होता है तो वह समझाने के बाद भी नासमझ बन जाता है। यही हाल इन दिनों प्रदेश कांग्रेस का हो रखा है। केंद्रीय नेतृत्व से लेकर प्रदेश के पार्टी प्रभारियों ने पार्टी संगठन में एका लाने के लिए तमाम प्रयास कर दिए। लेकिन मजाल है कि घोड़ा घास खाए। तमाम प्रयासों के बाद भी हासिल पाई जीरो। हाल में तो प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व सीएम के बीच एक बयानी तल्खी बढ़ी है। जानकार मानते हैं कि इस प्रकरण में कांग्रेस खरबूजे की भूमिका में है। यानी कुल मिलाकर नुकसान तो उसी का होना है।
पिछले दिनों युवा कांग्रेस के प्रभारी देवेंद्र यादव ने प्रदेश में आकर यहां के नेताओं को एक की माला में गूंथने के लिए स्वर से लेकर व्यंजन और बाहरखड़ी यानी अ से लेकर ज्ञ तक रटा दी। लेकिन उनके दिल्ली लौटते यहां नेताओं की बयान कलह शुरू हो गई। बात चाहे प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह की या फिर पूर्व सीएम हरीश रावत की या नेता प्रतिपक्ष डा इंदिरा हृदेश की। खींचतान अस्तित्व को लेकर है। देर सबेर यदि पार्टी के हालात सुधरे तो कोई भी पीछे क्यों रहे। संभावित टाॅप वाले को गिराने के प्रयास तभी तो अभी से हो रहे हैं। अक्सर होता क्या कि चुनाव नजदीक आते ही राजनैतिक दल अपनी एका का दिखावा करते हैं। ताकि वोटर उनकी एकता देख पहले तो प्रभावित हो, और नहीं तो कम से कम मुगालते में तो रह जाए। ताकि लोग उन पर भरोसा कर सकें। यही प्रयास इन दिनों कांग्रेस को भी करने चाहिए। जो कुछ नेता कर भी रहे हैं। लेकिन राजनैतिक महत्वाकांक्षा रखने वाले नेता खुद ही सब किए कराए पर पानी फेर दे रहे हैं।
हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने पुराने बागियों को रूठे हुए बताया। कहा कि कि राजनीति में किसी के लिए दरवाजे बंद नहीं होते। लेकिन किसी के शामिल होने या न होने का फैसला हाईकमान का होगा। जो भी आदेश होगा स्वीकार किया जाएगा। बागियों की वापसी को लेकर कहा कि जो अपने रूठे हुए हुए हैं उनके दरवाजे खुले हैं। इस पर कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत नाराजगी जाहिर कर गए।
कांग्रेसी दिग्गज और पूर्व सीएम हरीश रावत ने बेहद चुटीले अंदाज में कहा कि धन्य है उत्तराखंड की राजनीति। देश भर के दल बदलू अब रूठे हुए अपने हो गए। यह हमारी भूल थी कि हम उन्हें दल बदलू कह गए, पार्टी से बाहर कर दिया, न्यायपालिका ने भी उनकी सदस्यता रद्द कर दी। अब पता चला कि ये लोग तो दूध के धुले हुए 24 कैरेट का सोना हैं। भाजपा को हम यूं ही कोस रहे हैं। उन्होंने तो सिर्फ रूठे हुए लोगों को छाया दी है।
प्रदेश के अध्यक्ष का बयान और उस पर पूर्व सीएम की तल्खी से लगता है यह बात दूर तलक जायेगी। लेकिन कुल जमा बात की जाए तो कांग्रेस के लिए यह हालात चाकू और खरबूज की तरह हो रखे हैं। और इसका सीधा फायदा सत्तासीन पार्टी को ही होगा और किसी को नहीं।