सुबह सोशल मीडिया से जानकारी हुई कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के जुझारू और अनुशासित सदस्य, भाजपा के वरिष्ट नेता मोहन सिंह रावत गांववासी जी ने इस भौतिक जगत को अलविदा कह दिया है। वह काफी दिनों से अस्वस्थता से निजात के लिए संघर्ष कर रहे थे, लेकिन शायद होनी को यही मंजूर था।
सच में गांववासी जी का जाना लोकतंत्र व पूरे समाज के लिए ऐसी क्षति है जिसकी भरपाई नामुमकिन है। राजनीति के शीर्ष पायदानों पर होते हुई भी उनकी सादगी आम जनमानस के दिलों में उतर कर राज करने वाली रही।
प्राचीन यूनान से प्रसिद्ध दार्शनिक प्लेटो ने कहा कि The measurement of the mans, what he dose with power
एक कालखंड में पूरी पावर में रहते हुए जिस बंदे में लेसमात्र भी अभिमान नहीं आया निश्चित रूप से उन गांववासी जी की कमी को कौन पाट पाएगा भला। क्या शहर और क्या गांव, जरूरतमंद और कमजोर ही उनकी नजर में दो श्रेणियां रही, जिन पर उनका हमेशा ही फोकस रहा।
सन 1995 के आसपास के एक वाकये को याद करते हुए कठूली गांव निवासी शिक्षाविद् सोहन सिंह नेगी (गुरूदेव) बताते हैं कि कठूली इंटर कालेज उच्चीकरण का मामला जब लखनउ में अटकाया गया तो गांववासी जी मीटिंग कक्ष में ही परपंच करने वाले नेताओं से झगड़ पडे़ थे। गांववासी जी के स्वभाव की शीतलता की तुलना का यदि ख्याल भी करें तो शायद दूर तक भी कोई क्या नजर आएगा? लेकिन जनहित के लिए उनके तैश का जिक्र भी गुरूदेव अपने स्मरणों में करते हैं।
वह बताते हैं कि जब मजबूत जनाधार और बीजेपी के बड़े लीडर होने के बाद भी गांववासी जी को पार्टी का टिकट नहीं दिया गया, इस पर भी उन्होंने किसी तरह का विरोध तो दूर टिप्पणी तक नहीं की। यह उनके परम त्याग और अनुशासन का परिचय था। उनके साधे जीवन, विचारों की उच्चता और मानव कल्याण के भावों के विस्तार को कलम का फैलाव भी शायद ही समेट पाए।
राजनीति में बनावटी चेहरों की भरमार पहले से ही रही है। लेकिन गांववासी जी ने सादगी की जो नजीर समाज के सामने प्रस्तुत की है, लंबे समय तक याद की जाएगी। जन-जन के इस सादगी पसंद नायक को विनम्र श्रद्धांजलि।