सचमुच खामोश सी हो गई है मेरे गांव की होली

सिंगोरी न्यूजः रंगो ंका पावन पर्व होली उत्साह और उमंग का पर्व है। देश के हर कोने में बड़े उल्लास के साथ इस त्योहार को मनाया जाता है। इसकी मान्यता में तमाम कथाएं हैं। एक प्रचलित कथा बताती है कि राजा हिरण्यकश्यप कतई ईश्वर-विरोधी थे। लेकिन उनका पुत्र प्रहलाद ईश्वर का अनन्य भक्त था। पिता के तमाम मना करने पर भी वह भगवान की भक्ति में ढूबा रहता। लीन रहाता। उनसें अपार आस्था रखता। बस यही वो बात थी जो राजा को खलती थी। आखिर बात यहां तक आ गई कि मतांध राजा ने अपने पुत्र का वध करने की ठान दी। लेकिन यह कैसे संभव होगा। काफी सोच विचार करने के बाद पुत्र को मरवाने के लिए राजा ने अपनी बहन होलिका को तैयार किया, और अपने पुत्र को गोद में लेकर जलती लकड़ियों पर बैठने का आदेश दिया। ताकि अग्नि के ताप में प्रह्लाद भष्म हो जाय। बताया जाता है कि होलिका को देवताओं से वरदान मिला था कि वह आग से नहीं जल सकती, किंतु भगवान ने भक्त प्रहलाद की रक्षा की और गलत कार्य करने वाली होलिका अग्नि में जल गई। इसे लेकर और भी मान्यताएं और कथाएं हैं।
समय बदला और समय के साथ मूल्य बदले, मिजाज बदलते गए। आदमी का आचार व्यवहार बदला तो परंपराओं का बदलना भी लाजमी सा है। बात गांव की होली की करते हैं। आज से ज्यादा नहीं तीस चालीस साल पहले की बात करें तो पूरे देश में लोगों की आर्थिकी लगभग दरमियाना थी। सब जगह हर तीज त्यौहार, रस्मो रिवाज, नाते रिस्ते सब ठीक से निभाए जाते थे। बात होली की हो रही है तो होली में रंग गुलाल उड़ता था लगता था, लेकिन आज की तरह उस रंग में दिखावा नहीं था। अब तो हर त्यौहार पर बाजार हावी है।
आज की पीढ़ी अपने चेहरे पर अपने हिसाब से विभिन्न रंगों का डिजायन स्वयं कर रह दूसरों को होली की बधाई दे रही है। जब कि पहले एक दूसरे के पर रंग लगाया जाता था। पहले आपस में सौहार्द था। एक दूसरे के सुख दुख में लोग साथ खड़े मिलते थे। अब जो कामयाब है कामयाब का मतलब जिसके पास पैसा है उसी की बल्ले बल्ले है। परिक्रमा उसी की हो रही है। जबकि यह बात भी सबको पता है कि बुरे वक्त में पैसे वाला कभी काम नहीं आता, बुरे वक्त में वही काम आता है जो तुम्हें सही मन से चाहता हो प्यार करता हो। चाहे वह अर्थ से गरीब ही क्यों ना हो। नशे की गर्त में जाती नई पीढ़ी के सामने जिसने शराब परोस दी वही आज के हिसाब से सही मायनों में अच्छा ओर बड़ा आदमी है। और बात उसकी करें जो आर्थिक रूप से कमजोर है, उसकी तो बात ही मत करो।
जहां थोड़ा भी सभ्य समाज है वहां शहरों में नई पीढ़ी पर थोड़ा बंदिश देखी गई है। लेकिन गांवों के हालात तो बहुत बुरे हैं। होली ही शायद पहला वह त्यौहार है जब जब कोई किशोर नशा या भांग की नशीली दुनियां में प्रवेश करता है। गांवों में तो यह बात आम सी हो गई है। ये हमारे प्रवेश द्वार हैं जहां से नौनिहाल नशे की खौफनाक दुनिया में प्रवेश करते हैं। शुरू में इसमें साहस से लेकर ग्लैमर तक दिखता है। इस तरह के पर्व व उल्लास के उत्सवों में हर साल नई पीढ़ी के बहकते कदम यहां चर्चा का विषय बनते हैं। आज होली है तो सप्ताह दस दिन, महीना तक उस नौनिहाल की चर्चा होती रहेगी जिसने जाने या अनजाने में खुद को मदहोश किया हो। बहरहाल खंडित होती परंपराओं को बचाना होगा। और जब नशाखोरी खत्म होगी तभी जाकर परंपराओें को खंडित होने से बचाया जा सकता है। यह बात खास तौर अपने प्रदेश के छोटे शहरों और गांव के परिप्रेक्ष में ज्यादा प्रासंगिक है। कहीं ऐसा ना हो कि होलिका बच जाए और राजा हिरणकश्यप की मन की हो जाए।

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