सिंगोरी न्यूजः पौड़ी जनपद के अंतर्गत आने वाले श्रीनगर में दस दिवसीय सरस मेले का रंगारंग आगाज हो गया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह मेला भी अन्य सरस मेलों की तरह औरचारिकता और फिजूलखर्ची तक सिमट कर न रह जाए। मेले में हुए कारोबार का नफा नुकसान तो बाद में देखा जायेगा। लेकिन फिलहाल यह देखना जरूरी है कि यह मेला अपने पहाड़ को, यहां की संस्कृति को, यहां के जन जीवन को कितना नजदीक से छू रहा है। किसान मेलों का जो मकसद है क्या वह पूरा हो पायेगा। सवाल अपनी जगह है और खर्चा अपनी जगह। बसंती बिष्ट, नेगी दा सरीकी चोटी की प्रतिभाएं जो का पहाड़ का गौरव और धरोहर हैं। अकसर मंचों की शान बनते हैं। इसमें मनोरंजन तो है लेकिन नया कुछ नहीं है।
जनवरी माह में हल्द्वानी में हुए सरस मेले पर नजर डालें तो यहां तक पांच करोड़ का कारोबार हुआ था। राजस्थान की गुरगावी जूतियों से लेकर चायना के खिलौनों की भी यहां खूब धूम रही। नेपाल से आए जूते भी यहां खूब पलट पलट कर खरीददारों ने देखे। अपनी बाल मिठाई भी कहीं कहीं दिखी लेकिन काबारोबार के लिहाज से यहां हम पीछे और कहीं पीछे दिखे।
इसी दौरान सितारगंज में भी एक सरस मेले का आयोजन किया गया। यह मैदानी क्षेत्र है यहां इन मेलों की जरूरत तो अधिक नहीं होती लेकिन सही मायनों में इस तरह के मेले का अर्थ भी यहीं दिखता है। हाथ की बनी रस्सियां, सजावटी सामान ने यहां खूब धूम मचाई। स्थानीय लोगों ने स्थानीय उत्पादों के जरिए खूब मुनाफा कमाया। मेले में स्थानीय का बाजार मानो चल निकला। वहीं इस मेले में जो सबसे अहम बात रही या यूं कहें कि सही मायने में मेले अर्थ साबित हुए वह हैं सितारंगज निवासी अमीना हल्दर के पुत्र विक्रम। दिव्यांग विक्रम पेंटिंग करता है। यहां उसकी पेंटिंग 1200 में बिकी। उसकी खुशी उस दिन सातवें आसमान की ओर है। इससे पहले उसकी मेहनत को सराहना तो बहुत मिली लेकिन दाम किसी ने पहली बार चुकाया है, तो खुशी का होना भी लाजमी है। कुछ इस तरह की उम्मीद हमें श्रीनगर में आयोजित मेले से भी है
बहरहाल मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बतौर मुख्य अतिथि मेले का शुभारंभ किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की पारंपरिक भवन निर्माण शैली का जिक्र किया और मदद की बात कही। मेले के मकसद पर उन्होंने कहा कि आंचलिक व पारंपरिक उत्पादों को बाजार उपलब्ध करवाने के लिए यह मेला आयोजित किया जा रहा है।
जिस नेता की विधान सभा में यह सरस मेला आयोजित हो रहा है उनका नाम है डा. धन सिंह रावत। वर्तमान में वह सहकारिता, उच्चशिक्षा बतौर राज्य मंत्री स्वतंत्र देख रहे हैं। और सीएम के बाद दूसरे पावरफुल मिनिस्टरभी बताए जाते हैं। इतने भव्य आयोजन के लिए इनकी तारीफ की जानी चाहिए। पहली बार आयोजित होने वाले सरस मेला निसंदेह ही उनकी उपलब्धियों में जुड़ जायेगा। कहा कि खिर्सू में होमस्टे बासा टू के लिए 30 लाख रुपये जारी हो गए हैं। लेकिन असल बात यह है कि यह सरस मेला अपने उद्देश्य के कितने नजदीक पहुंच पायेगा। कहीं यह भी टिहरी के झील महोत्सव की तर्ज पर सिर्फ पैसा खर्च करने तक ही तो नहीं सिमट जायेगा। मेले में स्थानीय लोगों की सहभागिता बेहद जरूरी है। स्थानीय संस्कृति, उत्पााद, नई प्रतिभाओं का उदय और तमाम नजरिये हैं जिन पर दृष्ठि पड़नी चाहिए। देखा यह भी जाना चाहिए कि इस मेले में स्थानीयता की बागडोर सरकार से मोटी तनख्वाह लेने वालों के हाथ में है या फिर वास्तव में आम ग्रामीण इसका प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
यहां पौड़ी विधायक मुकेश कोहली, नगर पालिका अध्यक्ष पूनम तिवाड़ी, पौड़ी नगर पालिका अध्यक्ष यशपाल बेनाम, राज्यमंत्री अतर सिंह असवाल, गिरीश पैन्यूली, संपत सिंह रावत, जितेंद्र रावत, अनूप बहुगुणा, लखपत सिहं भंडारी, पंकज सती आदि मौजूद रहे।
प्रसिद्ध जागर गायिका बसन्ती बिष्ट और नरेंद्र ंिसह नेगी ने भी प्रस्तुतियां दी।
और भी कई कलाकार यहां आने हैं। लेकिन संस्कृति को बचाने के इस तरीके में एक हिसाब से नया कुछ नहीं। पहाड़ से लेकर मैदान तक के जो गायक यहां प्रस्तुति देंगे वह तो कब से देते आए हैं। पूछा जाना चाहिए कि इस मेले में नया क्या है। आयोजकों का रटा रटाया जबाब मिला सारा कुछ तो नया है। मेला ही पहली बार हो रहा है। लेकिन रैपर बदलने से ज्यादा कुछ नहीं होगा भीतर का माल भी बदलना होगा। पहाड़ी व्यंजन सिर्फ दिखने के लिए नहीं बल्कि बिकने के लिए हों। अच्छा होता कि स्थानीय उत्पादों को अलग से व्यवस्था होती। स्वरोजगार की दिशा में पालतू पशुओं का बाजार भी यहां प्रयोग के तौर पर लगता। राजस्थान के ऊंठ मेले की तरह।