देहरादूनः वर्ष 2016 से बिच्छू बूटी पर शोध कर रहे सुनील दत्त कोठारी ने इसके महत्व को विस्तार दिया है। इस पौधे की पत्तियों से हर्बल चाय की उत्तम किस्म तैयारी की जा रही है। जो बेहतर स्वास्थ्य को रामवाण साबित होगी।
सुनील कोठारी को यह ज्ञान व सेवा का जज्बा उनके पुरानों से मिला है। वह बताते हैं कि यह काम उनका पुस्तैनी है। नई विचारधारा के साथ आधुनिक परिवेश में उपजी समस्याओं का निराकरण कर मानव सेवा का जज्बा रखते हैं। उनके पुरानों का ज्ञान उनके पास हस्त लिखित भी मौजूद है।
कोठारी बताते हैं, कि यह एक तरह का सॉफ्ट साइंस है। अगर हम इनकी मान्यता को मानते तथा जीवन में धारण एवं विश्वास करते हैं, तो कहीं ना कहीं इसका प्रभाव मानव समाज को सुखद एवं बनाने में अहम भूमिका रखता है। आखिर हमारी संस्कृति रुमानव की रक्षा करना ही हमारी रुसनातनऋधर्म की परंपरा हमेशा रही है।
बिच्छू बूटी या बिछुआ घास से बनी माला, जड़, तना, एवं पत्ते की उपयोगिता को अगर अपने जीवन में धारण करते हैं, धारण करने से कई चमत्कारी प्रभाव दिखाई पड़ते हैं।
1.बिच्छू बूटी या बिछुआ घास से शनिवार को रुस्नान करने से शनि दोष दूर होता है।
2.बिच्छू बूटी या बिछुआ घास के के सेवन से खासकर रुचाय के रूप में पीने से शनि ग्रह शांति सुखद फल देता है।
3.बिच्छू बूटी या बिछुआ घास को अपने घर में रखने से शनि ग्रह द्वारा उत्पन्न क्लेश एवं रुनशा आदि की प्रवृत्ति तथा कुसंगत से परिवार के लोग बचे रहते हैं।
4.बिच्छू बूटी या बिछुआ घास को अपनी रुतिजोरी या जेब में पर्स के अंदर रखने से, शनि ग्रह के प्रभाव से दिन पर प्रतिदिन रुधनऋवृद्धि का योग बने रहते हैं।
5.बिच्छू बूटी या बिछुआ घास को रुदुकान, रुफैक्ट्री वह सभी प्रकार के व्यवसायिक प्रतिष्ठान में दीपावली वाले दिन रखने से दुकान और व्यापार वृद्धि के कारण और सहायक सिद्ध होते हैं।
6.बिच्छू बूटी या बिछुआ घास को सोते समय तकिए के नीचे रखकर सोने से मानसिक तनाव में सुधार आत्मक परिवर्तन देखा गया है।
7.बिच्छू बूटी या बिछुआ घास को वाहन में रखने के अंदर रखने से दुर्घटनाओं में भी कमी पाई गई है।
कोठारी आगे बताते हैं उत्तराखंड में पाए जाने वाली लगभग 4000 प्रजातियां के पौधे जिन्हें हम हीलिंग हर्ब्स के नाम से जानते हैं। शायद आयुर्वेद के किसी पुस्तक में इनका विवरण संभवत न के बराबर हो। इन पर कार्य एवं खोज जानकारी के अभाव से कुछ प्रमुख व्यक्तियों के हाथों में ही है जिनके पित्र पूर्वज इस प्रकार की जड़ी बूटियों पर काम करते थे। ऐसी कुछ व्यक्तित्व जिनकी पीढ़ियों में काम होता रहा जिला पौड़ी गढ़वाल के ब्लॉक द्वारीखाल चेलुसैन में स्थित संस्था कोठारी पर्वतीय विकास समिति के अंतर्गत इस प्रकार के कार्यों का निर्वाह करते हैं। इस संस्था का उद्देश्य अपनी संस्कृति को बचाते हुए उत्पाद के रूप में आधुनिक परिवेश में इनकी उपज को बढ़ाना है ताकि मानव और मानवता जीवित रह सके।
एक लंबे समय से कोठारी इस पर शोध आत्मक कार्य कर रहे हैं इस कार्य में सहायक रही संस्था एवं उनके पित्र पूर्वजों की हस्तलिखित किताबें आपके पास विरासत रूप में मिली हुई है जो लगभग 400 वर्ष भी पुरानी है। उन्हीं को आधार लेकर आप कार्य कर रहे हैं, जो वास्तव में उत्तराखंड की परिवेश में अपनी संस्कृति को बचाने के साथ-साथ आजीविका वर्धन का कार्य भी कर रहे हैं। सुनील दत्त कोठारी आगे बताते हैं इस बूटी का प्रतिपादन एवं विधि का प्रयोग योग्य पंडित द्वारा विशेष नक्षत्र एवं दिन, मुख्यतः जिनकी ईस्ट और आराध्य देवी दक्षिण कालिका रही हैं, वही इस जड़ी बूटी को अभिमंत्रित करने का शुद्धता रखते हैं।
तभी यह जड़ी बूटी सामान्य व्यक्तियों के लिए बड़े ही लाभप्रद और सिद्ध कारक होगी। सुनील दत्त कोठारी बताते हैं अगर नीलम जैसी रत्नों के द्वारा शनि ग्रह की कुदृष्टि को बदला जा सकता है तो बिच्छू बूटी या बिछुआ घास का प्रभाव इसके लिए कई गुना लाभप्रद है।
सुनील दत्त कोठारी बताते हैं, इस बूटी पर शोध का कार्य अनेक पहलुओं को लेकर चाहे आयुर्वेदिक मिश्रण द्वारा चाय तैयार करना हो, या मंत्रात्मक रूप में इस पर कार्य करना अलग-अलग परिवेश में अभी भी जारी है।