थलीसैण में चौथी बार कुट्टी भाई के रणनीतिक कौशल का कमाल

 

कु्ट्टी भाई यानी पंचायतों की राजनीति का अपराजित छत्रप

आओ आज बात करते हैं, अपने साधारण व्यक्तित्व और शालीनता के लिए पहचाने जाने वाले थलीसैण प्रखंड के नरेंद्र सिंह रावत की। जी हां, यह करैक्टर अपने आप में जबरदस्त है, पंचायत की राजनीति में बंदे की रणनीति कौशल का भौकाल है। भाई ने बोल दिया तो मजाल है कोई टस से मस हो जाए। अब देखो ना, दो दशक से थलीसैण जैसे बड़े ब्लाक पर अगले भाई का एकछत्र राज है। और तो और जिला पंचायत की टॉप सीट की गणित पर भी इन्हीं के फार्मूले फिट बैठते हैं।

पौड़ी जनपद के दूरस्थ गांव तरपाली के रहने वाले नरेंद्र सिंह रावत जिन्हें कुट्टी भाई के नाम से ज्यादा जाना जाता है, यह नाम अब राठ क्षेत्र से उभरते हुए अब जिला और प्रदेश के राजनैतिक पटल पर फैलाव पा रहा है। कारण यह है पंचायत की राजनीति पर अगले की पकड़ अद्वितीय है। प्रदेश की राजनीति के गिने चुने उदाहरणों में भी जाहिर तौर पर कुट्टी भाई के नाम को भी आसानी से जगह मिल जाएगी।

हाल ही में हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में थलीसैण ब्लाक के प्रमुख पद कुट्टी भाई की बहु यानी छोटे भाई की पत्नी ने एकतरफा जीत दर्ज की। इससे पहले तीन बार उनकी पत्नी मंजू रावत 1996, 2009 व 2019 में विकास खंड का नेतृत्व कर चुकी हैं।
मंजू रावत इस बार भी सौंठ सीट जो उनकी देवरानी सुनीता रावत का मायका है। से क्षेत्र पंचायत सदस्य हैं और 32 क्षेत्र पंचायत सदस्यों का समर्थन उनके साथ था, इसके बावजूद उन्होंने भी प्रमुख पद के लिए अपनी देवरानी सुनीता रावत को आगे किया। और परिणाम तो हर बार की तरह एकतरफा जीत के ही साथ आए। इसे कु्ट्टी भाई का रणनीति कौशल की सफलता ही कहेंगे कि चौथी बार ब्लाक का नेतृत्व की बागडोर उन्हीं के हाथ में आई है।
आज के समय में जहां एक पद के लिए भाई भाई मैदान में उतरने के तमाम उदाहरण हैं वहीं तरपाली व सौंठ की सीटें वहां के लोगों ने इन प्रत्याशियों के लिए खाली रखी हुई थी। इस बीच जो सिर्फ बहकावे में आगे आए उन्हें जमानत जब्त करा कर ही संतोष करना पड़ा।

यह सच है कि कुट्टी भाई पर राठ क्षेत्र का गजब का भरोसा करता है। उनका सरल स्वभाव, संघर्ष का जज्बा, जनहितों के प्रति समर्पण का ही नतीजा है कि विरोधी उनके सामने खड़े तो होते हैं लेकिन टिक नहीं पाते। अपने विरोधियों को पटखनी देकर धूल चटाने का हुनर तो कुट्टी भाई बाखूबी जानते हैं।
जलवा ऐसा कि स्वयं की बहू प्रमुख की प्रत्याशी, लेकिन कोई चिंता नहीं। पूरा चुनाव प्रबंधन राठ क्षेत्र के युवाओं के हाथ में सौंप वह स्वयं जिला पंचायत अध्यक्ष सीट पर कैम्पियन करते रहे। अध्यक्ष जिला पंचायत में भी उनके कैंडिडेट की एकतरफा विजय सबके सामने है। राजनैतिक वर्चस्व में फैलाव की बात करें तो जिला पंचायत अध्यक्ष पद के समीकरणों पर उनका खासा प्रभाव देखा गया है। राठ की राजनीति से उभर कर आए कुट्टी भाई अब प्रदेश की राजनीति में भी पहचाने जाने लगे हैं।
सच में, आज के भौतिकवाद, मौकापरस्ती, सत्तालोभ, लालचयुक्त महत्वाकांक्षी दौर में आम जन का यह कभी न टूटने वाला भरोसा यूं ही नहीं बन जाता, कुट्टी भाई बनने के लिए साधारण, शालीन, सहज व संघर्ष जैसे गुणों का होना अनिवार्य है।

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