सिंगोरी न्यूजः 26 साल पहले आज ही के दिन यानी 8 अगस्त 1994 को राज्य के सरकारी कर्मचारियों ने नौकरी छोड़ दी थी। और पूरी तरह से पृथक राज्य के लिए चल रहे आंदोलन में कूद गए थे। तब के दौर में भी भगवान का मिलना काफी हद तक आसान था और नौकरी कठिन। बावजूद इसके पहाड़वासियों के लहू ने उबाल मारा तो किसी ने भी यह नहीं सोचा कि नौकरी छोड़ देंगे तो बच्चे कैसे पलेंगे। कहीं बच्चों की पढ़ाई सामने थी तो कहीं हल्दी का इंतजार करते बेटी के हाथ। यह कदम जितना उबाल मारने वाला था उतना ही आत्मघाती भी था। आंख बंद करके लाखों की तादाद में कर्मचारी आंदोलन में कूद गए। इस त्याग को बहुत बड़ा त्याग इसलिए भी माना जाएगा, क्योंकि अपनी रोटी को दांव पर लगाने के लिए बहुत बड़ा जिगरा चाहिए। नेता, ठेकेदार, युवा जोश और काफी हद तक मातृशक्ति भी हर किसी आंदोलन की ताकत निसंदेह ही रही हैं। लेकिन किसी आंदोलन के लिए सरकारी नौकरी जैसी सुरक्षित और बेहतर रोटी और उससे भी अधिक अहम परिवार में बच्चों का निवाला छोड़ने तक के जज्बे को इतिहास के पन्नों पर सुनहरी चमक जरूर नसीब होगी।
गढ़रत्न लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी भी तब सरकारी सेवा में थे। इसके बावजूद भी उन्होंने उत्तराखंड आंदोलन के गीत लिखने और गाने का खतरा मोल लिया। उनके गीतों ने आंदोलन को जो धार दी उसे देश के किसी भी जनआंदोलन की संजीवनी के रूप में सदियों तक याद किया जायेगा। हालांकि ढाई दशक के इस समयांतराल में आंदोलनकारी कर्मचारियों में से कई सेवानिवृत हो चुके हैं। लेकिन संघर्ष की जमीन पर उनकी खींची गई लकीरें आज भी साफ साफ चमक रही हैं। नई पीढ़ी भी उन्हीं लकीरों के अनुशरण पर है। आज उसी आठ अगस्त के आत्मघाती फैसले को याद करते हुए उत्तराखंड कार्मिक एकता मंच ने शहीदों को याद किया और स्मृतियों को ताजा करने का भी संकल्प लिया।
पौड़ी गढ़वाल में आन्दोलनकारिओं पर बर्बरतापूर्ण लाठीचार्ज की 26वीं वर्षगांठ के अवसर पर उत्तराखंड कार्मिक एकता मंच ने कहा कि इस घटना के विरोध में जिस प्रकार उत्तराखंड का समूचा कार्मिक समुदाय राज्य प्रप्ति के आन्दोलन में कूद पड़ा था, आज उसी तर्ज पर अपने सेवा सम्बन्धी बुनियादी सवालों के प्रति जवाबदेही के लिए समूचे कार्मिक समुदाय को एक मंच पर आने की जरूरत है। हैरत है कि सेवा के बुनियादी सवाल आज भी अपनी जगह हैं।
मंच के प्रदेश अध्यक्ष रमेश चंद्र पाण्डे ने कहा कि उत्तराखंड के इतिहास में आठ अगस्त का दिन क्रांति दिवस के रुप में दर्ज है। पौड़ी से हुई इस क्रान्ति की शुरुआत के बाद अपनी कुर्सी को दांव में लगाकर 94 दिन तक सड़कों पर संघर्ष करने वाले कार्मिक अपने बुनियादी सवालों को लेकर सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैए से हैरान हैं।
शहीदों के सपने के रूप में आवाज दो हम एक हैं के नारे को धरातल पर साकार करने के लिए संकल्पबद्ध एकता मंच के प्रदेश अध्यक्ष ने आगाह किया कि शहीदों की शहादत और कार्मिकों की आत्मघाती बगावत से बने उत्तराखंड राज्य में अब कार्मिकों की उपेक्षा कतई बर्दास्त नहीं होगी। यहां हरहाल में जवाबदेही सुनिश्चित की जायेगी। उन्होंने समूचे कार्मिक समुदाय जनजागरण अभियान को सफल बनाने का आह्वान किया ।
एकता मंच के मंडलीय संयोजक सीताराम पोखरियाल ने बताया कि जनजागरण अभियान के तहत गंगोत्री से गंगा जल का कलश लेकर सभी जनपदों में एकता यात्रा व विचार गोष्ठी आयोजित की जाएगी । हर रविवार को वेबिनार की जा रही है और एक अक्टूबर को देहरादून स्थित शहीद स्थल में खुली विचार गोष्ठी कर दो अक्टूबर को रामपुर तिराहा स्थित शहीद स्थल में शहीदों को श्रृद्धांजलि अर्पित की जायेगी । lead photo symbolic