सिंगोरी न्यूजः मौजूदा समय मंे संस्कृत भाषा और उस पर काम करने वालों की जो स्थिति है, यकीनन उसे बेहतर नहीं कहा जा सकता। संस्कृत पर काम करने वाले एक हिसाब से हासिए पर हैं। और विद्वत जनों की रचित पांडुलिपियां कहीं आलमारियों में धूल फांक रही हैं तो कहीं कतई जर्जर हाल में हैं। लेकिन सूबे के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के दरवार से आज एक उम्मीदों भरी खबर आई है। दशकों से खराब हो रही पांडुलिपियों को अब सहेजा जाएगा। यानी उन्हें नया जीवन मिल जायेगा। और संस्कृत के क्षेत्र में अच्छा काम करने वालों के भी दिन बहुरेंगे। इसके लिए बजट का प्रावधान रखा गया है।
मंगलवार को सूबे के सचिवालय परिसर में संस्कृत अकादमी उत्तराखण्ड की जो बैठक मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की अध्यक्षता में संपंन हुई, उसमें संस्कृत के संवद्र्धन की दिशा में कई अहम बिंदु निकलकर सामने आए। और मंथन के पश्चात बेहतरी के निर्णय भी हुए।
बैठक में निर्णय लिया गया कि संस्कृत अकादमी का नाम अब ‘उत्तरांचल संस्कृत संस्थानम् हरिद्वार, उत्तराखण्ड’ होगा। इस मौके पर मुख्यमंत्री ने कहा कि सस्कृत विश्व भर की सभी भाषाओं की जननी है। इसे बढ़ावा देने के यथा संभव प्रयास जरूरी हैं। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा को बढ़ावा देना बहुत जरूरी है, जिससे हमारी प्राचीन संस्कृति का संरक्षण तो होगा ही, साथ ही संस्कृत भाषा के प्रति नई पीढ़ी का भी रूझान बढ़ सकेगा। निर्णय लिया गया कि संस्कृत भाषा के संवद्र्धन की दिशा में पहले सूबे के सभी जनपदों में संस्कृत ग्राम बनाये जाएंगे। और उसके बाद ब्लॉक स्तर पर संस्कृत ग्रामों की स्थापना की जायेगी। इसको लेकर मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश जारी कर दिए हैं।
सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने निर्णय लिया है कि संस्कृत के क्षेत्र में अच्छा कार्य करने वालों का सम्मान किया जायेगा। साथ ही पाण्डुलिपियों के संरक्षण के लिए बजट का प्राविधान किया जायेगा। इसके लिए बाकयदा बजट का प्रावधान होगा। संस्कृत भाषा का साहित्य हर जगह आसानी से उपलब्ध हो इसके लिए डिजिटल लाइब्रेरी भी बनाई जायेगी। उन्होंने सभी अधिकारियों को इस दिशा मंे गंभीर रहने को कहा है। जाहिर तौर पर मुख्यमंत्री का यह निर्णय हासिए पर सरकती संस्कृत भाषा को फिर आगे बढ़ाएगा, साथ ही मृतप्राय होती पांडुलिपियों को नया जीवन मिल सकेगा।