बूंखाल मेलाः ‘कलम’ आज उनकी जय बोल

बूंखाल मेलाः कलम आज उनकी जय बोल

बूंखाल पौड़ीः बदलाव हालांकि अचानक नहीं आते, उनके पीछे बहुत छोटे छोटे किंतु अनवरत प्रयासों की भूमिका अहम होती है। एक समय में आज ही के मौके पर प्रत्येक वर्ष रक्त रंजित होने वाली बूंखाल कालिंका की धरती पर जिन कोशिशों से बदलाव आया है उसके आगे हमारे पूरे समाज को दण्डवत तो होना ही चाहिए। कलम को भी निश्चित तौर पर उन प्रयासों की जय जयकार करनी चाहिए।

असंख्य लोगों की आराध्य बूंखाल मेले की पृष्ठिभूमि को ज्यादा खंगालना तो उचित नहीं होगा, लेकिन उसकी टक्कर का कौतुहल भूतो ना भविष्यति की कहावत को चरितार्थ करता है। इस धरती के संबोधन हेतु कलमकारों ने पशु बलि के लिए कुख्यात जैसे शब्द तक गढ़ डाले। जो देखा जाए तो स्वाभाविक भी था। जिन लोगों ने इस मेले के डेढ दो दशक पहले का मंजर देखा होगा संभवतः वह इसे भले से समझ सकेंगे।

बदले हालातों ने बूंखाल मेले का जो स्वरूप सामने रखा है वह निसंदेह ही सराहनीय तो है ही पूज्यनीय और वंदनीय भी है। जिसे गलत माना और लिखा जाता था खुशी की बात यह है कि आज उसका पूर्णतया परित्याग हो गया है। सिर्फ इस परित्याग ने ही मेले की फिजा बदल डाली है। बाकी मेले का उल्लास, देवताओं के साजों (ढोल दमाउ) की मंत्रमुग्ध कर देने वाली धुनें, देवी जागरों (मंडाण) में झूमता भक्तों का सैलाब, सिर पर माता की लाल चुन्नी बांधे बच्चों का उल्लास, युवा पीढ़ी का जोश और माथे पर फैली हुई आस्था की गहराई झलकाती सिंदूरी टीके की लालिमा सब कुछ उसी रौ में है जैसे दशकों पूर्व हुआ करती थी। पुजारी से लेकर चक्रघावक तक सबका सम्मान यथा स्थान है।

मंदिरों में पशुबलि विरोधी जन जागरण करने वाले कालीमठ क्षेत्र के गबर सिंह राणा और मुखरता से विरोध करने वाली पौड़ी कोट क्षेत्र निवासी व पूर्व में पशु कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष रही श्रीमती सरिता नेगी का जिक्र किए बगैर आज के इस उल्लास को मुकम्मल नहीं लिखा जा सकता है। समाज में इस बदलाव के लिए उनकी भावना और साहस काबिल ए तारीफ है। और भी होंगे लेकिन खासतौर पर ये वो शख्सियतें हैं जिन्होंने बलि के विरोध में अपमान के साथ साथ प्रताड़नाएं तक झेली हैं। वह साधुवाद के पात्र हैं।

वहीं सरकार के कैबिनेट मंत्री व क्षेत्रीय विधायक डा धन सिंह रावत के प्रयास भी बूंखाल मेले की सात्विकता के लिए सदा अमिट रहेंगे। क्षेत्र के कई देवी भक्तों ने बलि के लिए लाए गए पुशओं को बूंखाल काली के खप्पर में पूजा अर्चना के बाद प्रशासन को सौंप दिया। सच में वह बहुत ही भावुक कर देने वाला दृश्य था, यहां किसी निरीह बेजुबान को असंभव माना जाने वाला जीवनदान जो मिला था। मेले की सात्विकता की दिशा में यह बेहद अहम टर्निंग प्वाइंट रहा। इन्हीं प्रयासों से धीरे धीरे नई परंपराओं का जन्म हुआ। और आज बूंखाल की शान में कई सितारे जगमगा रहे हैं।

बूंखाल में पतंजलि योगपीठ के आचार्य बाल कृष्ण के साथ ही कैबिनेट मंत्री डॉ0 धन सिंह रावत ने देवी के दर्शन कर पूजा अर्चना की व क्षेत्र की खुशहाली की कामना की। भंडारे में बड़ी संख्या में भक्तों ने प्रसाद ग्रहण किया।


इस अवसर उन्होंने मंदिर के नव निर्माण का भूमि पूजन भी किया। आचार्य ने बताया कि पतंजलि योगपीठ मंदिर निर्माण को 51 लाख रुपये दान स्वरुप प्रदान कर रही है।

मंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि बूंखाल कालिंका देवी मंदिर को ओर भव्य रूप में विकसित किया जायेगा। कहा कि पार्किंग व मंदिर के बाद बूंखाल में धर्मशाला व पुजारी आवास भी तैयार किए जाएंगे। मंदिर निर्माण में हर गांव से एक व्यक्ति ट्रस्टी रहेगा। क्षेत्र के प्रत्येक गांव का प्रत्येक परिवार पुण्य कार्य में आहूति देगा।
मेले के सफल आयोजन हेतु मंदिर समिति के अध्यक्ष डा राजेंद्र सिंह नेगी, सतेंद रावत, सहयोगी उमेश ढौंडियाल व अन्य सभी सहयोगियों की मेहनत की भी भूरि भूरि प्रशंसा की। बूंखाल की खुशहाली देखकर सच में आज बदलाव के उन तमाम प्रयासों के प्रति कृतज्ञता जाहिर करने का भी वक्त है, जिनके परिणाम कभी असंभव से प्रतीत होते दिखते थे। बूंखाल कालिंका की कृपा सब पर बनी रहे।

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