प्रमोशन की राजनीति और उत्तराखंड के अध्यापक

 

उत्तराखंड में अध्यापकों का प्रमोशन मुद्दा अब शिक्षा से ज़्यादा राजनीति और नाटक का मंच बनता जा रहा है।

सरकार ने साफ़-साफ़ कह दिया है कि “सभी अध्यापक अगर कोर्ट से अपने केस वापस ले लें तो तुरंत प्रमोशन कर दिया जाएगा।” लेकिन अध्यापक अपनी ही जिद पर अड़े हैं।

निदेशालय में धरना और कोर्ट में झूठ

प्रमोशन की मांग को लेकर अध्यापक धरने पर बैठे। जब मामला कोर्ट पहुँचा तो वहां अध्यापकों ने दावा किया कि “हम तो धरना दे ही नहीं रहे।” लेकिन अदालत में धरने का वीडियो पेश हुआ और पोल खुल गई। नतीजा—कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई और आदेश दिया कि सभी मास्टरों को धरना स्थल से वापस बुलाओ। मजबूरी में अध्यापकों को धरना छोड़कर स्कूल लौटना पड़ा।

संघ का अंदरूनी खेल

इस पूरे घटनाक्रम में एक और परत सामने आई है। जिस शिक्षक संघ के प्रांतीय पदाधिकारी अध्यापकों का नेतृत्व कर रहे हैं, वही आपस में एक-दूसरे के खिलाफ कोर्ट में आज भी हैं। अदालत में कुछ अलग और प्रदेशभर के अध्यापकों को बरगलाकर आंदोलन की राह पर धकेलना अलग। ये है शिक्षक नेताओं का दोहरा चरित्र।

असली नुकसान किसका?

यह दोहरा खेल साफ़ दिखाता है कि प्रमोशन की राह में सबसे बड़ी अड़चन अध्यापक और उनके अपने नेता ही बने हुए हैं।
एक तरफ कोर्ट जाकर प्रक्रिया रोकना,
दूसरी तरफ धरना देकर सरकार पर दोष मढ़ना,
और ऊपर से संघ के पदाधिकारियों का आपसी झगड़ा इन सबका खामियाज़ा आखिरकार अध्यापक वर्ग को ही भुगतना पड़ रहा है। प्रदेश के लाखों छात्रों के पढ़ाई का नुकसान इन 15 दिनों में हुआ।

नतीजा

अदालत की फटकार के बाद अध्यापक अब स्कूल लौटे हैं, लेकिन प्रमोशन की गाड़ी वहीं की वहीं अटकी है। जब तक अध्यापक और उनके नेता खुद समझदारी नहीं दिखाएँगे, तब तक न प्रमोशन मिलेगा और न ही उनकी साख बचेगी।

यह पूरा प्रकरण बताता है कि जिन्हें बच्चों को ईमानदारी और सच्चाई का पाठ पढ़ाना चाहिए, वे खुद कोर्ट, धरना और आपसी राजनीति में उलझकर शिक्षा और छात्रों के भविष्य दोनों से खिलवाड़ कर रहे हैं।

About The Singori Times

View all posts by The Singori Times →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *