सिंगोरी न्यूजः पूरे देश में जिस तरह के हालात बन रहे हैं उससे लगता है कि उत्तराखंड को भी अपनी टेस्टिंग व्यवस्था के खरेपन का एक बार रिब्यू करना चाहिए। इस बात की भी जांच की जानी आमजन के हित में होगी कि कोरोना की जो जांच हमारी प्रयोगशालाओं में हो रही हैं वह वास्तव में सही हैं। खरी है। यदि हमें शत प्रतिशत नतीजे चाहिए तो इस बात की शंका की जानी जरूरी है। और जब शंका होगी तभी समाधान भी होंगे। एक और बात, एसिम्प्टोमैटिक यानी बिना लक्षणों वाले मरीजों की है, उस पर खासतौर पर ध्यान देना होगा।
बता दंे कि जांच का दायरा बढ़ाने के लिए पूरे देश में प्रयास हो रहे हैं। उत्तराखंड भी इसमें क्यों पीछे रहेगा। जो रिपोर्ट 36 और 48 घंटे में आती थी वह अब कुछ ही घटों में सामने आ रही है। लेकिन यहां सवाल उठता है कि जो ये तेजी है कहीं यह भ्रम की स्थितियां तो पैदा नहीं कर रही है। गुणवत्ता की कसौटी पर यह कितनी खरी है। यह मामला तब और भी गंभीर हो जाता है जब स्वयं भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने नई रैपिड किट से टेस्टिंग पर सवाल उठाने के साथ ही उस पर फिलहाल के लिए रोक लगा दी है। प्रदेश के देहरादून, नैनीताल, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर जिले के हॉट स्पॉट क्षेत्रों में टेस्टिंग की प्रक्रिया शुरू की गई थी। लेकिन फिलहाल वह नहीं होंगे।
स्वास्थ्य मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के मुताबिक केंद्र से प्रदेश को अभी तक पांच हजार रैपिड एंटी बॉडी किट मिली हैं। देहरादून व अन्य प्रभावित क्षेत्रों मंे उन्हें भेजा गया है। किट से जरिए टेस्टिंग की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। लेकिन आईसीएमआर ने दो दिन के लिए नई रैपिड किट से टेस्ट करने पर रोक लगाई है। आईसीएमआर की अनुमति मिलने के बाद ही फिर से रैपिड टेस्ट शुरू किए जाएंगे। ऐसे मंे सवाल तो स्वाभाविक से हैं। कि इससे पूर्व में जो यहां जांच हुई हैं वह गुणवत्ता के लिहाज से कितने खरे हैं। कहीं ऐसा ना हो कि हम लचर व्यवस्थाओं के चलते मुगालते में हों और बाद में यह और बड़ी चुनौती के रूप में सामने आए। इसलिए समय रहते इस दिशा में विचार किया जाना जरूरी है।