सिंगोरी न्यूजः एक समय में सदी का महानायक कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव के चुनाव में गला फाड़ फाड कर कहा था कि यूपी में जुर्म कम है। इतना बड़ा झूठ बोलकर इस नायक ने अपनी गति कई लोगों की नजरों में नालायकों जैसी कर दी थी। अरसे बाद यूपी की सत्ता हाथी साइकिल से होते हुए कमल तक आई तो देवभूमि के लाल और गोरक्षनाथ मठ के महंत योगी आदित्यनाथ ने सत्ता संभाली। अपराधियों के अभयारण्य माने जाने वाले यूपी में कुछ हलचल जरूर हुई। जिसकी सरसराहट उत्तराखंड में भी सुनाई दी। कहीं आॅपरेशन मजनूं चले तो अपराधियों को खदेड़ने के लिए आॅपरेशन क्लीन। एक दर्जन दो दर्जन से लेकर कई दर्जन अपराधियों को एनकाउंटर में पुलिस ने ढेर कर दिया। सच क्या थ पता नहीं लेकिन ऐसी सूचनाएं भी आई। जाहिर तौर पर यहां अपराधियों की तादाद पहले से कम होना स्वाभाविक है। तब जानकारों का कहना था कि क्राइम की दिशा में यदि योगी यूपी में बीस की उन्नीस भी करते हैं तो उसे कामयाबी ही कहा जायेगा। और हुआ भी। लेकिन क्या क्रें हाल में कानपुर में हुए घटनाक्रम से तो यह साफ हुआ है कि गिनती के अपराधी भले योगी राज में कम हुए हों लेकिन उनके हौसले कहीं कम नहीं हुए। कारणों पर जानकार एक ही ओर इशारा करते हैं और वो है राजनीति और अपराध का गठजोड़।
अपराध का राजनीतिकरण और राजनीति का अपराधीकरण यह ऐसा विषय है जिस पर सूबे से लेकर केंद्र तक अनगिनत बहसें हुई। लेकिन समाधान नहीं निकला। अपराध और राजनीति के गठजोड़ के प्रमाण दिनों दिन पुख्ता होते गए। लेकिन इस गठजोड़ को कमजोर करने के बजाए इसकी जड़ें दिनों दिन मजबूत होती रही हैं। कानपुर में विकास दुबे के घर पर पुलिस के साथ हुई बर्बरता अपराध के हौसलों और दुस्साहस की तस्दीक कर रहा है कि हत्या के प्रयास के एक मामले में आरोपी को गिरफ्तार करने गए आठ पुलिसकर्मियों को मौत की घाट उतारा जाता है। इस घटना के बाद पुलिस हरकत मंे आई। पूरे गांव की घेराबंदी कर दी गई। चैराहों से नाके नुक्कड़ चप्प चप्पे पर पुलिस बिछ गई। लेकिन हासिल क्या हुआ। अभी तक कुछ भी तो नहीं। पचास हजार रुपये का इनामी बदमाश के सिर पर अब इनाम बढ़कर ढाई लाख रूपया हो गया है। कभी उसे मुजफरनगर में बताया जाता तो कभी दिल्ली में। लेकिन हाथ खाली हैं। यहां सवाल नहीं उठना चाहिए कि आखिर हमारे खुफिया तंत्र का नेटवर्क कहां है। क्यों इतने बड़े घटनाक्रम को अंजाम देकर यूपी के योगीराज में अपराध का इस तरह से विकास हुआ है।
बिकरू गांव विकास का किलेनुमा मकान है जिसे पुलिस ढहा दिया है। अच्छा किया। उसका आपराधिक इतिहास राज्य के डीजीपी हितेश चंद्र अवस्थी ने खुद दी रोशनी डाली कि चैबेपुर थाने में विकास के खिलाफ हत्या और हत्या के प्रयास जैसे संगीन साठ मुकदमे दर्ज हैं। इस इतिहास रचने में उसे बीस साल लगे। लेकिन किसी भी मामले में उसे सलाखों के पीछे नहीं रोका जा सका।
राजनैतिक दखल की बात करें तो कया भाजपा, क्या सपा और क्या बसपा। उसके आपराधिक इतिहास के पन्नों पर हर किस्म के रंग हैं। विकास दुबे की पत्नी के जिला पंचायत चुनाव में सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव और पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव की तस्वीरों के साथ पोस्टर समाजवादी पार्टी के झंडे के ही रंग का है। तो कहीं बसप का। कभी भाजपा के रंग में भी विकास के पोस्टर बने हैं। हालांकि इन पार्टी के नेताओं की सफाई आई है कि वह पार्टी से नहीं था। वह खुद बगैर की इजाजत के ही ऐसा करता था। लेकिन इतने अहम सवाल के इस बेहद हल्के जबाब पर कौन एतबार करेगा।
जानकार कहते है। कि न सिर्फ विकास दुबे, बल्कि इस तरह के न जाने कितने कथित माफिया और अपराधी हैं जो राजनीतिक दलों की शह में अपनी धमक व पैसा बनाते हैं और चुनाव में उन्हें लाभ पहुंचाते हैं। इनके पैसे और बाहुबल का इस्तेमाल दलों के नेता अपने फायदे के लिए करते हैं।
जाहिर सी बात है कि 2001 में विकास दुबे ने थाने में जाकर सरेआम एक एक मंत्री की हत्या की। और उस मामले में वह बरी हो गया। सवाल उठता है कि क्या यह सरकार की इच्छा के बगैर संभव था। कतई नहीं। जानकार बताते हैं कि तब सूबे में बीजेपी की सरकार थी। पुलिस उसे गिरफ्तार तक नहीं कर सकी। उसने खुद सरेंडर किया। अन्य जगहों पर भी ऐसे कई वाकये मिलेंगे जिन पर गंभीर मामलों के दर्जनों केस चल रहे हैं। लेकिन पार्टियां उन्हें टिकट देती हैं और वो जीतते हैं। अपने आका को जिताते हैं।
कानपुर के घटनाक्रम ने राजनीति और अपराध के गठजोड़ की कई परतें खोल कर रख दी हैं। यदि योगी राज में अपराधियों पर नकेल डाली गई तो उस सख्ती के तीन साल बाद भी विकास दुबे के हौसले इस कदर बुलंद कैसे थे कि उसने पुलिस के साथ ही खूली की होली खेल दी। यहां अपराध पर नकेल डालने की बात करने वालों को एक बार फिर से खुद की समीक्षा करनी होगी।