धन दाः वह शख्स, जिसकी धड़कनों में हिलोरें लेता है ‘राठ’

आम तौर पर जब नेता लोग मंच पर भाषण देते हैं तो सामने बैठे दर्शक या श्रोता दो भागों में बंटे होते हैं। यह दो तरह के विचारों की स्थितियां तब अधिक बलवती होती हैं जब मंच पर कोई दूर का नहीं नजदीक का हो। लेकिन देहरादून में राठ विकास समिति के स्थापना दिवस समारोह में जो सहजता, स्वीकार्यता और सहृदयता महसूस की गई उससे साफ है कि प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री व राठ जैसे विकट क्षेत्र से आने वाले डा धन सिंह रावत और राठ एक दूसरे से पर्याय से हैं।

तकरीबन चार सौ दर्शकों की क्षमता वाले संस्कृति विभाग के प्रेक्षागृह में धनदा ने क्षेत्र के मेधावी छात्र-छात्राओं को सम्मानित किया। बच्चों के प्रोत्साहन में पूरा प्रशाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा। उसके बाद बात आई राठ के उस लाल के संबोधन की जिसे सुनने के लिए अच्छी खासी पहुंच रखने वाला राठ का जनमानस इंतजार कर रहा था।

धनदा ने सभी को हमेशा ही अपनी जड़ों से जुड़कर रहने की बात करते हुए कहा कि तमाम व्यस्तताओं के बाद भी वह माह में अठ्ठारह दिन क्षेत्र में रहते हैं। कहा कि गंावों को फिर से संजोने की जिम्मेदारी हम सबके उपर है। राठ क्षेत्र में हुए विकास की बात करते हुए धनदा ने शिक्षा स्वास्थ्य, बिजली, पानी, सड़क आदि बुनियादी जरूरतों से लेकर क्षेत्र की विभूतियों जैसे वीर चंद्र सिंह गढ़वाली, टिंचरी माई आदि की स्मृति को हुए प्रयासों पर रोशनी डाली।
ऐसा कम देखा गया है कि जब किसी भाषण में शत प्रतिशत सुनने वालों का ध्यान सिर्फ और सिर्फ भाषण पर हो। लेकिन इस कार्यक्रम में जिस मनोयोग से लोग अपने नेता को सुन रहे थे उसका उदाहरण आज के समय में असंभव सा है कहें तो इसमें कहीं दुराव नहीं होगा।

क्षेत्र के विकास की चर्चा में धनदा ने जब कार्य गिनाते हुए पीठसैण, ताराकुंड और दो चार जगहों के नाम लेते हुए कहा कि इन स्थानों पर कौन कौन जा रखे हैं जरा हाथ खड़े करो। तो क्षेत्रवासियों के हाथ ऐसे उठे मानो स्कूल में गुरूजी के पूछे गए किसी प्रश्न का उत्तर जानने वाले विद्यार्थी उत्तर देने के लिए उत्सुक हो रहे हों।

जो नहीं गए वो अगल बगल इशारों में वहां जाने का प्रोग्राम मौके पर ही फाइनल करते दिखे। कार्यक्रम में कहीं लेस मात्र भी यह नहीं लगा सामने से किसी राजनेता का संबोधन हो रहा है। गजब है यार, क्षेत्र में इस तरह की स्वीकार्यता बिरले नेताओं को ही नसीब होती हैं। जब वह अपनी ठेठ क्षेत्र की टोन में बोल रहे थे तो सभागार की हवा में राठ की विराटता, सांस्कृतिक सामर्थ्य, भाषाई मिठास और अपनेपन की सरसराहट बाहर वालों को भी साफ तौर पर महसूस हो रही थी। राठ का गौरव हर किसी के दिलों में हिलारें मार रहा था।

 

About The Singori Times

View all posts by The Singori Times →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *