गलियारों की गर्माहट: सच में, यूं ही नहीं बना ‘वो’ सियासत का सूरमा

सिंगोरी न्यूजः उत्तराखण्ड के पूर्व सीएम हरीश रावत और कांग्रेस के राष्टीय महासचिव हरीश रावत अपनी अलग राजनीतिक शैली के लिए जाने जाते हैं. सियासी संघर्षों से उनका दशकों पुराना नाता है. कह सकते हैं कि उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी राजनीति में इसी तरह बिता दी. आज भी वे सूबे के किसी भी नौजवान नेता से बहुत आगे दिखाई देते हैं. उनके समकालीन सियासी लोग कहाँ हैं, बताने की जरूरत नहीं है. लोगों से मिलने-जुलने का वहीं दशकों पुराना ठेठ अंदाज है, जो कभी नहीं बदला. यही कारण है कि हरीश रावत भले ही चुनाव जीते-हारे हों लेकिन नेता वे हमेशा बने रहे और माने गए. जिसका अभाव बाकी लोगों में दिखाई देता है. उनकी राजनीतिक विचार धारा के चलते आलोचना की जा सकती है, लेकिन एक सियासी व्यक्तित्व के तौर पर कोई उन्हें खारिज नहीं कर सकता. ये आज भी और इस उम्र में भी उनमें देखने को और समझने को मिल रहा है. हरीश रावत आज भी एक कुशल और फिट नेता की तरह लगातार सियासी यात्राएं कर रहे हैं. फिर चाहे वे राज्य के अंदर की जा रही हों या देश के अन्य प्रांतों में पार्टी की जिम्मेदारी निभाने के लिए. उनकी लगातार सक्रियता बनी हुई है.


अनलॉक-1 से ही वे अपनी सियासी पारी खेलने में जुट गए हैं. राज्य में अभी करीब डेढ़ साल बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. लेकिन मÛ बउ ींतपेी तंूंज हरीश रावत मौजूदा सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे. उनकी मौजूदगी से कांग्रेस के युवा कार्यकर्ताओं में भी उत्साह देखने को मिल जाता है. आज कल वे फिर पहाड़ों के दौरे पर हैं. शुरआत हुई गैरसैण को स्थाई राजधानी बनाने को लेकर गैरसैण में किये गए सियासी प्रोग्राम से जिसमें कांग्रेस के कई नेता मौजूद रहे. उसके बाद वे कुमाऊं क्षेत्र में पुहंच गए हैं. जहां पिछले कुछ समय से बादल फटने और भारी बारिश से जानमाल का नुकसान हुआ है. वे ऊबड़-खाबड़ रास्तों से दूरस्थ गांवों में पैदल पहुंच रहे हैं और लोगो का हाल जानने की कोशिश कर रहे हैं. इस बूढ़े नेता की ऊर्जा देख कर नौजवानों को भी प्रेरणा लेनी चाहिए. जब लोग महज सोसल मीडिया में बने रह कर ही आभासी तौर पर खुद को नेता साबित करने की जद्दोजहद में लगे हैं. उनकी इस सक्रियता से विरोधी दाँतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाते हैं।


दरसल हरदा मंगलवार को पिथौरागढ़ जिले के धारचूला विधानसभा क्षेत्र के आपदा पीड़ित गांवों का दौरा. करने पहुंच गए। उनके साथ राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा, स्थानीय विधायक हरीश धामी और पूर्व विधायक ललित फर्स्वाण धापा गाँव जहां भूस्खलन से लोग खतरे में है, वहा
रावत ऐसे रास्तों से गुजर रहे हैं जो इन दिनों बेहद दूभर हो रखें हैं.
यहां पहुंच कर हरीश रावत ने अपने सोशल मीडिया के जरिये गम्भीर चिंता ब्यक्त करते हुए बताया कि इस इलाके में कई जगह रॉड का अतापता नहीं है. कुछ जगहों पर बीआरओ ने अच्छा काम किया है. वहीं उन्होंने साफ किया है कि यहां देख कर पता चलता है कि बॉर्डर रोड्स ऑर्गेनाइजेशन इन इलाकों के अंदर इल-इक्विप्ड है और ये तब हालत है जब चीन, इसके बॉर्डर्स में दस्तक दे रहा है और यह सड़क जिस पुल पर मैं खड़ा हूं, ये पुल शुरुआत है चीन के बॉर्डर के लिये सड़क की और हालात को कोई भी व्यक्ति देख सकता है कि क्या हालात हैं, तो बॉर्डर रोड्स ऑर्गेनाइजेशन को और ज्यादा साधन जुटाने चाहिये और एक लंबी दृष्टि से यहां की सड़कों को पुनर्गठित करना चाहिये। पुनर्निर्माण का कार्य जल्दी शुरू किया जाना चाहिए. तो ये है हरीश रावत का सियासी अंदाज. ऐसे में उनके विरोधियों का बौखलाना तो बनता है। मीडिया लाइव से विपिन कण्डारी की स्टोरी।

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