गिरीश सुंदरीयाल जिसने गढ़वाली साहित्य कोे रचना भी सिखाया और गाना भी

गौं की दशा या इनो बोला कि दुर्दशा पर गिरीश सुन्दरियाल की एक गढवल़ि ग़ज़ल….चौमासा मा तिसाला़ किलैछाला़ मन मा छाला किलैसैरा गौं को एकी सवालमोरूंद म्यारा ताला़ किलैबाइ बूती जौं बल़दूनवूंका गिच्चा म्वाला़ किलैचूड़ी बिन्दी फूंदी रूणीहर्ची गैनी म्याला़ किलैमेरा मुलुक बाघ रिखचिनखौं का जग्वाला़ किलै…

आसीस सुन्द्रयाल़ द्वारा इस दिन पोस्ट की गई शनिवार, 21 दिसंबर 2019

सिंगोरी न्यूजः इस बात पर तो साधुवाद का पात्र है सोशल मीडिया। जिसने गिरीश सुंदरीयाल जैसी प्रतिभा को कई लोगों के सामने रखा। उनकी एक प्रस्तुति चैमास मा तिसाळा किले, छाळा मन मां छाळा किले, उन संवेदनाओं को छू रही है जो शायद लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी के लेखन व आवाज ने छूये हैं। एक सामान्य लेखक व गायक की प्रस्तुति की तुलना गढ़वाली के आदरणीय नेगी से करना कहां तक उचित है यह ज्यादा बहस का मसला नहीं है। लेकिन जिस तरह इस प्रतिभा ने अपनी इस रचना में गांव की तस्वीर को उकेरा है, प्रस्तुत किया है वह वाकई अच्छे अच्छों को आइना दिखाने के लिए काफी है। आइना इस लिए कि जहां कई लोग स्वयं को गढ़वाली लेखन, गायन गजल के तुरम्म खां बता रहे हैं वहीं यह श्रीमान सुंदरीयाल जैसी प्रतिभायें स्वयं को कभी आगे लाने का प्रयास नहीं करती। लेकिन इनकी उंचाईयों को कोई नकार भी नहीं सकता।

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