रमेश नेगी Special Story
कौन नहीं चाहता कि उसके आंगन में जो किलकारी गूंजे उस खनखनाहट से पूरा मोहल्ला रौनक से भर जाए। लेकिन कुछ अभागे आंगन ऐसे भी होते हैं जहां रोशनी तो होती है लेकिन टूटते और डूबते तारों की तरह एक असह्य पीड़ा दे जाते हैं। जहां बच्चे कुपोषण का शिकार होते हैं यहां उस पीड़ा बात हो रही है। इस दर्द के मरहम के लिए प्रदेश सरकार और उसके मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत की जितनी सराहना की जाए कम है। क्योंकि विकास तो सत्त प्रक्रिया है लेकिन ममता के आंसुओं को समय रहते नहीं संभाला जाता तो हजारों की तादाद में खिलखिलाती दुनिया सदा के लिए बेरंग हो जाती।
तेरह जनपदों वाले सूबे उत्तराखंड में हजारों की तादाद में बच्चे किसी ना किसी तरह से कुपोषण का शिकार हैं। आंकड़े परेशान करने वाले भी हैं और डराने वाले भी। यह एक ऐसी बीमारी है जो उठने से पहले एक दुनिया को बेजान कर देती है। और मां बाप व अन्य परिजनों के लिए छोड़ जाती है कभी ना खत्म होने वाली एक असह्य पीड़ा। यह वह दर्द था जिसे अब तक नहीं समझा गया। यानी इन परिस्थितियों से निपटने के लिए कोई योजना इससे पहले नहीं बनी। और ना ही इस दिशा में बेहतरी के लिए किसी ने सोचा। इसलिए भी सूबे के मुखिया त्रिवेंद्र रावत सराहना के पात्र हैं कि उन्होंने इस अनदेखे दर्द को न सिर्फ महससू किया बल्कि उसका समाधान भी तलाशा।
हुआ यूं कि योगिता नाम की एक कुपोषित बच्ची एक दिन किसी कार्यक्रम में उन्हें यानी सीएम को दिखी, आसुंओं से डबडबाई आंखें लिए योगिता की मां तो मानो पूरी तरह से टूट चुकी थी। सीएम त्रिवेंद्र ने उसी दिन फैसला किया कि इस तरह की असह्य पीड़ा का महरम बनाना है। ठीक एक साल पहले सितंबर 2019 कुपोषित बच्चों की रक्षा के लिए एक योजना शुरू की गई और नाम रखा गया कि गोद अभियान। यानी सूबे में जहां पर कुपोषण बच्चे होंगे उनकी पूरी देखभाल इस गोद अभियान के तहत होगी।
योजना पर काम हुआ तो डरावने आंकड़े सामने आए। टूटती सांसों के साथ दुनिया की मुश्किल चुनौतियों की एक नाकाम कोशिश करने वाले कुपोषित बच्चों की तादाद यहां हजारों में है। अब तक 9177 बच्चे ऐसे चिन्हित किए गए हैं जो कुपोषित हैं। मानवता और संवेदनाओं से लबालब इस सोच के सुखद नतीजे देखिए कि इस एक साल की समयावधि में 1988 बच्चे कुपोषण से मुक्त हो चुके हैं। और 385 की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। इसे बड़ी सफलता ही कहा जा सकता है। काम जारी है। जिनके बच्चे कुपोषण से मुक्त हो रहे हैं उस आंगन की खुशी दूर से ही महसूस की जा सकती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सूबे में जो भी कुपोषित बच्चे चिन्हित हुए हैं उन्हें गोद योजना का लाभ मिले और जल्द वह इस बीमारी से मुक्त हो जाएं। पूरा प्रदेश कुपोषण मुक्त हो जाए।
सीएम त्रिवेंद्र रावत का कोठिशः आभार जताते हुए योगिता की मां कहती हैं कि पहले उनकी बच्ची के शरीर में जान नहीं थी। उसका वजन आठ किलो था। पूरे परिवार के लिए उससकी बीमारी किसी दहशत से कम नहीं थी। अब वह दौड़ती है, खेलती है। चुस्त हो गई है। अब उसका पूरा परिवार बच्ची की उछलकूद के पीछे उल्लासित रहता है। योगिता की तरह ही सरकार के गोद अभियान से कई डूबते सितारे फिर से जगमग हो जायेंगे, इन्हीं उम्मीदों के साथ इंसानियत और मानवधर्म के इस बड़े योजनाकार को सिंगोरी न्यूज का सलाम।