सिंगोरी न्यूजः शिक्षक समाज के निर्माण के लिए नई पीढ़ी को तरासते हैं। उन्हें इस काबिल बनाते हैं कि वह जीवन में आने वाली चुनौतियों को सामना कर सकें। और सामाजिक मूल्यों को बनाए रख सकें। उसमें सकारात्मकता भी होगी और सृजन भी। नई पीढ़ी को शिक्षित करने के साथ ही उनकी सृजनशीलता को निखारने की कला तो बिरलो में ही होती है। ऐसे ही एक शिक्षक हैं पौड़ी जनपद के एकेश्वर प्रखंड में तैनात आशीष नेगी।
यूं तो पहांड से लेकर मैदान तक हर जगह शिक्षक तो मिल ही जायेंगे। आत्मचिंतन व मितभाषी शिक्षक आशीष नेगी जिस क्षेत्र में सेवाएं दे रहे हैं वहां उन्हें उनके शिक्षण के प्रति निष्ठा और सृजनशीलता के लिए जाना जाता है। ग्रामीण परिवेश भी छोटे बच्चे की तरह होता है। जिसे सही दिशा में ढालना आसान नहीं होता। या यह भी हो सकता है कि अभी तक इस तरह के प्रयास हुए ही ना हों। लेकिन जो भी हो आशीष नेगी के स्कूल में नहीं बल्कि अन्य स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए वह आदर्श हैं। बात चाहे अनुपयोगी को उपयोगी बनाने की कला हो या आत्मविश्वास को जगाती अभिनय कला, यह सब नई पीढ़ी को सिखाना तो कोई शिक्षक आशीष से सीखे। कक्षा से इतर उनकी शिक्षा में आयु की बाध्यताएं खत्म हो जाती हैं। बच्चे से लेकर बड़े तक उनका अनुशरण करने में नहीं हिचकिचाते। बात ग्रामीण व ग्रामीण बच्चों को स्वच्छता का महत्सव समझाने की हो या रचनात्मकता की किसी दूसरी गतिविधि की। वहां आशीष अपने आप में अलग दिखते हैं। कोरोना काल में हुए लाॅकडाउन में उन्होंने किस्से और कहानियों की एक सीरीज शुरू की। जिसमें वह हर रोज एक लघु कथा सुनाते हैं। तो आज पहाड़ं में ही नहीं सूबे और देश की राजधानी समेत बड़े शहरों मंे उनकी इस सीरीज को काफी पसंद किया जा रहा है। बच्चों के साथ बड़े भी अब हर रोज वाॅटसअप पर उनकी कहानी का इंतजार करते रहते हैं।
इन दो महीनों के समयांतराल में उन्होंने गढ़वाली लोककथा फुर्र फथें मेरी कुंडली कथें, लीसे ब्योलि, भानु बुगठ्या, चालाक बुडड़ी, आदि लोक कथाओं के साथ प्रेम चंद्र की कहानी – राष्ट्र सेवक, हरिशंकर परसाई की सुधार, अशोक भाटिया की तीसरा चित्र, बर्तोल्त ब्रेख्त की नेकी, अजगर वजाहत की लुटेरा, दीपक मसल की दाग अच्छे हैं, बलराम अग्रवाल की जहर की जड़ंे, सुकेश साहनी की कुआँ खोदने वाला, पद्मजा शर्मा की सच अपने तरीकेसे, महेशानन्द जी के दादा जी कु नाती आशीष नेगी की स्वरचित मजदूर को मिलाकर लधु कथाओं का अद्र्धशतक पूरा कर दिया है। कथा वाचन में जब किसी की मिमिक्री करते हैं तो कई दिनों में बच्चों की जुबान पर चढ़ सा जाता है।
वह कहते हैं कि दगड्या ग्रुप से इसकी शुरूआत हुई जिसमें कक्षा 6 से लेकर एम0 ए0 तक के छात्र हैं। गु्रप में क्राफ्ट, आर्ट, पढ़ाई कम्प्यूटर सामान्य ज्ञान उसी में उत्त्तराखण्ड के इतिहास को अपनी आवाज मैं रिकॉर्ड कर भेजता था। फिर एक दिन उनके मनोरंजन के लिए एक कहानी भेजी उन्हें बहुत पसंद आई फिर मैंने ये कहानी सब को भेजनी शुरू कर दी। आज ये हजारों लोगों मे हर रोज जाती है। अपने दोस्त परिवार वालो से पता किया तो वो भी फारवर्ड करते है। जिससे अंदाज लगाया कि 6 से 7 हजार लोगों का आंकड़ा मेरे पास आया। दिल्ली ,चंडीगढ़, एहमदाबाद, लखनऊ ,अरुणाचल, बेंगलोर कई जगह से मेसेज आये ओर मैंने इस श्रंखला को जारी रखा। बहरहाल नई पीढ़ी को सृजन में ढालते आशीष नेगी का साधुवाद।