ग्रीष्मकालीन गैरसैंणः अंधड़ सा शिगूफा, जिसमें दिखता कुछ नहीं है और होता भी कुछ नहीं

सिंगोरी न्यूजः गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर सीएम त्रिवेंद्र रावत ने राजनैतिक हिसाब से शानदार स्ट्रोक खेला है। सूबे की अधिकांश जनता इस में उम्मीद तलाश रही है तो गुजरे कुछ दिनों में नेतृत्व परिवर्तन का शिगूफा उछालने वाले भी इससे औंधे मुहं गिर गए हैं। सीएम त्रिवेंद्र की यह घोषणा कैसे जमीन पर उतरेगी कहा नहीं जा सकता। लेकिन इस घोषणा पर सवालों की फेहरिस्त भी लंबी और विधान सभा चुनाव के लिए समय बहुत कम।
गैरसैंण सत्र के दूसरे दिन बहुत ही नाटकीय ंढंग की भावुकता लिए सीएम त्रिवेंद्र रावत ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया। बगल में बैठक विधान सभा अध्यक्ष प्रेमचंद्र अग्रवाल ने भी बड़ी सिददत से उनकी पीठ थपथपाई। मानो कह रहे हों कि शाबाश। तुमने बहुत बड़ा काम कर दिया। कलाकार इतने कि इस पर मिठाई का डब्बा भी तत्काल खोला गया। बाकायदा मुहं मीठा हुआ। तालियां भी खूब बजी। सोशल मीडिया पर तो मानो शेयर बाजार में गजब का उछाल आ गया। कुछ जगहों पर तो यूकेडी के द्वारा मिष्टान बांटे जाने की सूचनाएं तक आई। लेकिन इन सब के बीच यह घोषणा उस अंधड़ की तरह लग रही है जिसमें तेज हवा सिर्फ धूल मिट्टी को उड़ाती है उसमें दिखाई कुछ नहीं देता है और होता भी कुछ नहीं हैं।
अगर सियासी लहजे में कहा जाए तो यह घोषणा अपने आप में मुनाफे का सौदा है। सीधा खेल है। इस बार ग्रीष्मकाल तो राजधानी के हिसाब से निकल गया है। रही बात अगले साल के ग्रीष्मकाल की, तो तब शासन और सरकार पर 2022 के विधान सभा चुनाव की तैयारियों का दबाव रहेगा। तब भी घोषणा की बाध्यता नहीं रहेगी। और उसके अगले साल होने वाले चुनाव में इस घोषणा का अच्छे से दोहन किया जायेगा। ग्रीष्मकालीन राजधानी के नाम पर वोट लेकर।
अगर सवालों की बात करें तो क्या त्रिवेंद्र रावत ने इसका कोई रोडमैप तैयार किया है,? यदि किया भी है तो उन्हें इतना तो भान होना चाहिए कि राजधानी सरीके तामझाम को दून से गैरसैंण पहुंचाने में खर्चा कितना आएगा? क्या इस खर्चे की व्यवस्था की गई है? जहां विकास योजनाएं तो छोड़ो मुलाजिमों का वेतन तक समय से नहीं मिल रहा है। वहां इस तरह के मोटे खर्चे को कैसे एडजस्ट किया जायेगा? इस खर्च को खत्म करना है तो फिर ग्रीष्मकालीन नहीं स्थाई राजधानी गैरसैण को बनाया जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ।
एक उदाहरण जम्मू कश्मीर का दिया जा रहा है जहां ठीक इसी तरह से ग्रीष्मकालीन राजधानी का रिवाज है। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि जेएंडके इससे पूर्व वह राज्य रहा जहां देश के सभी राज्यों से अधिक बजट खपता रहा। धारा 370 के चलते विशेष राज्य का दर्जा। वहां के आय स्त्रोतों से भी यहां की तुलना करनी चाहिए। खैर छोड़िये।
बताया जाता है कि भराड़ीसैंण में सुविधाओं का अभाव है। सुविधाओं के नाम पर विधान भवन और कुछ आवासीय परिसर हैं। इसके अलावा पानी, कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचा भी विकसित नहीं है। ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने से सरकार को अब यहां पर सरकारी अमले के लिए पूरी व्यवस्था करनी होगी। सबसे जरूरी बुनियादी ढांचा तैयार करना होगा। जो हो भी जायेगा। लेकिन जो सरकार मंडल मुख्यालयों में मंडलीय अधिकारियों तक को ठीक से नहीं बैठा पा रही रही है वह नौकरशाहों के साथ उनके लाव लश्कर को कैसे गैरसैंण बिठा पायेगी यह भी सोचने वाली बात है। बहरहाल ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित होने की खुशी में भाजपा खुद ही अपनी पीठ ठोक रही है। अबीर गुलाल उड रहा है, गनीमत है आतिशबाजी नहीं हो रही। लेकिन जानकारों की राय में यह एक धूल मिट्टी के अंधड़ की तरह है जिसमें पहले भी कुछ नहीं दिखता और हवा शांत होने के बाद होता भी कुछ नहीं।

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