कठूलीः जब तक सूरज चांद रहेगा, संजय तेरा नाम रहेगा
आज सुबह करीब 10 बजे फूल मालाओं से सजे सेना के वाहनों में शहीद संजय रावत का पार्थिव शरीर उनके गांव कठूली पहुंचा। गांव के उपर इस स्टेशन का नागराजा कहा जाता है। यहां पर गांव का प्राइमरी स्कूल व इंटर कालेज है। इन्हीं स्कूलों से संजय ने भी शिक्षा हासिल की है।
अपने लाडले के इंतजार में सुबह से पूरा गांव मानो सांसे थामे खड़ा था। पहुंचे कि अभी नहीं पहुंचे, कहां पहुंचे, कब पहुंचेंगे। इस तरह के सवाल और उनके जवाबों के आदान प्रदान के बीच पता ही नहीं चला कि दोपहर का सूरज आंखों की नमी को सोखने की नाकाम कोशिश करने लगा है। लेकिन कहां, शहादत के प्रति सम्मान और विछोह की संवेदनाओं के आगे कोई नहीं जीत पाया।
नागराजा सड़क से करीब दो सौ मीटर नीचे उतरने पर संजय का घर है। गांव के इस तोक को कुसली धाराखेतु नाम से भी जाना जाता है। सच में इन रास्तों की मिट्टी भी आज खुद को धन्य समझ रही होगी, जो कभी बचपन में जीतू के नंगे पांवों पर तो कभी सेना के काले बूटों पर लिपटी होगी। आज वह मिट्टी किसी भी माथे पर लग उसे धन्य करने का माद्दा रख रही है।
कई जगहों पर लोग सेना के वाहनों के दूर से दर्शनों के लिए सड़कों पर इंतजार कर रहे थे। एक अजीब किस्म की बेचैनी के बीच इंतजार खत्म हुआ और नागराजा में सेना के सजे वाहन से शहीद संजय तिरंगा ओढ़कर अपनी मिट्टी को आखिरी बार चूमने अपने घर पहुंचे। उन संवदेनाओं को शब्द देने की अब तक की सारी कोशिशें नाकाम रही हैं, तो जाहिर है इस बार भी वही होगा। सीने में उबाल मारती भावनाओं को सिर्फ महसूस किया जा सकता है। उन्हें नतमस्तक होकर प्रणाम किया जा सकता है।
मां, पिता जी, पत्नी, बच्चे, भाई बहन, चाचा, ताउ के साथ सभी सगे संबंधियों ने अपने लाडले के माथे को चूमकर उसके आखिरी दर्शन कर, मां भारती के चरणों में दिए गए सर्वोच्च बलिदान के लिए उसे शैल्यूट किया। आम दर्शन व औपचारिकताओं के बाद सभी ने जिगर के टुकड़े को घर से अंतिम विदाई दी।
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अलकनंदा के तट पर स्थित पैतृक घाट पर शहीद को पुष्पांजलि व सलामी कार्यक्रम के बाद सैन्य सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई। बड़ी तादाद में क्षेत्र के लोग शहीद के अंतिम दर्शनों के लिए आए। इस दौरान जब तक सूरज चांद रहेगा, संजय तेरा नाम रहेगा जयकारे का नाद यहां लंबे समय तक गगन को भेदते रहेंगे। वीर सपूत को कोटिशः नमन।