मुकुल वासनिक थामेंगे कांग्रेस की पतवार


खबर है कि कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक के बाद अनुमान लगाया जा रहा है कि इसमें कांग्रेस के नए अध्यक्ष की घोषणा हो सकती है.

इस बीच भारतीय मीडिया और सोशल मीडिया पर एक नाम चर्चा में आ गया. शुक्रवार को ये अटकलें लगाई जाने लगीं कि मुकुल वासनिक को कांग्रेस का नया अध्यक्ष बनाया जा सकता है.
लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था लेकिन कांग्रेस कार्य समिति ने उनके इस्तीफे को स्वीकार नहीं किया था.

कई बार 49 वर्षीय राहुल गांधी को अपने पद पर बने रहने के लिए कहा गया लेकिन उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष का पद स्वीकार करने से इनकार कर दिया था. इसके बाद से कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर किसी नए शख़्स के बैठने के कयास लगाए जाने लगे थे.

पहले अनुमान लगाया गया कि इसके लिए किसी अनुभवी और गैर-गांधी परिवार के शख़्स को चुना जाएगा. साथ ही साथ इस पद के लिए सुशील कुमार शिंदे, मल्लिकार्जुन खड़गे, प्रियंका गांधी, ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट के नामों की भी खासी चर्चा रही.

सीडब्ल्यूसी की बैठक से एक दिन पहले इस पद के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री और गांधी परिवार के क़रीबी मल्लिकार्जुन खड़गे और मुकुल वासनिक के नाम को लेकर ख़बरों का बाजार गर्म है.

खड़गे केंद्रीय मंत्री रहने के अलावा पिछली लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता भी थे. वहीं, 59 वर्षीय वासनिक केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं और उनका अच्छा खासा प्रशासनिक अनुभव भी रहा है.

कौन हैं मुकुल वासनिक
महाराष्ट्र के वरिष्ठ नेताओं में से एक मुकुल वासनिक के राजनीतिक जीवन की शुरुआत एनएसयूआई से हुई थी. उनके इर्द-गिर्द पहले से ही राजनीतिक माहौल था क्योंकि उनके पिता बालकृष्ण वासनिक महाराष्ट्र के दिग्गज नेताओं में से एक थे.

उनके पिता बालकृष्ण वासनिक बुलढाना से सिर्फ 28 साल की उम्र में सांसद चुने गए थे. अपने पिता का रिकॉर्ड तोड़ते हुए वासनिक ने महज 25 साल की आयु में लोकसभा का चुनाव जीता था. उस समय वह सबसे कम उम्र के सांसद थे.

उनके पिता तीन बार बुलढाना से सांसद रहे. पिता के बाद मुकुल वासनिक ने बुलढाना की अपनी पारंपरिक सीट से 1984, 1991 और 1998 में लोकसभा चुनाव जीता था.
1984 से लेकर 1986 तक वह कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई और 1988 से लेकर 1990 तक भारतीय यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे.

2008 में उन्हें ब्रेन हेमरेज हुआ. इसे मात देते हुए वह स्वस्थ होकर लौटे और उन्होंने 2009 में लोकसभा चुनाव लड़ा.

2009 में उन्होंने अपनी पारंपरिक सीट बुलढाना को छोड़ दिया और रामटेक से लोकसभा चुनाव जीता. उनके अनुभव को देखते हुए उन्हें सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री बनाया गया. इस समय वह कांग्रेस महासचिव हैं और गांधी परिवार के काफी क़रीबी समझे जाते हैं.

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