सिंगोरी न्यूजः इन दिनों श्राद्ध पक्ष है। अपने पितरों को तर्पण से लेकर भोजन कराने तक पितृभक्त पूरे मनोयोग से लगे हुए हैं। इसी संदर्भ में लोकगायक प्रमेन्द्र सिंह नेगी सारगर्भित कविता प्रासंगिक और विचारणीय है। यह रचना सोशल मीडिया पर खूब चल रही है।
जु तुमुन कबि ब्वै का हथ मा
गुड चणे बुजडि धरि हौ,
कि लि ब्वै खाणी चबाणी रे
बौण सार्यूं मा
न कबि बुबा कु खंकोरू छटगाणू
एक तमखु की पिण्डी दे हो
द्वी गफ्फा खिलाण पिलाण मा,
लोलौं तुमरा पित्त पकणा रैनी,
सदनि सौणा रैनि तुमरी धुत्तकार
कभी नि कारि तुमुन सेवा सत्कार
अब मुर्या मा किले, अर कैकु थे
पकाणा छा बावन ब्यंजन छत्तीस प्रकार ?
प्रमेन्द्र नेगी