पीछा करते सवालः गैर कानूनी धंधों के बावजूद मिलती रही क्लीन चिट

सिंगोरी न्यूजः जब चरमपंथियों के लिए काम करने के आरोप में देविंदर सिंह को गिरफतार किया गया था तो तब स्वयं पुलिस के अधिकारियों ने ही यह बात कही थी कि पैसों का बहुत लालच था और इसी लालच ने उन्हें ड्रग तस्करी, जबरन उगाही, कार चोरी और यहां तक कि चरमपंथियों तक की मदद करने के लिए मजबूर कर दिया। इसके अलावा पिछले साल पुलवामा में हुए चरमपंथी हमले में भी शामिल होने के आरोप भी उन पर लगे उनका कहना है कि हमले के समय देविंदर सिंह पुलिस मुख्यालय में तैनात थे. पुलवामा हमले में 40 से ज्यादा सुरक्षाकर्मी मारे गए थे.
यह बात सामने आई कि एक पुलिस अधिकारी का कहना था, हमें इस बात की पक्का जानकारी थी कि वो चरमपंथियों को कश्मीर से लाने-ले जाने में मदद कर रहे थे। यह बात भी सामने आई है कि सिंह की गैर-क़ानूनी गतिविधियों के ख़िलाफ कई बार जाँच बैठी लेकिन हर बार उनके वरिष्ठ अधिकारी उनको क्लीन चिट दे देते थे.
जब डीएसपी देविंदर सिंह को कश्मीर के शहर क़ाजीगुंड से गिरफ्तार किया गया तो उस वक्त देविंदर जम्मू जा रहे थे। उनकी कार में हिज्बुल कमांडर सैय्यद नवीद, उनके सहयोगी आसिफ राथेर और इमरान भी उस समय उनकी गाड़ी में मौजूद थे। पुलिस के सूत्र बताते हैं कि पुलिस चेकप्वाइंट पर डीआईजी अतुल गोयल और देविंदर सिंह के बीच बहस भी हुई थी। पुलिस के सूत्र बताते हैं, देविंदर सिंह ने चरमपंथियों को अपने बॉडीगार्ड के तौर पर परिचय कराया लेकिन जब गाड़ी की तलाशी ली गई तो उसमें से पाँच हैंड ग्रेनेड बरामद हुए. एक राइफल भी गाड़ी से बरामद हुई। डीआईजी गोयल गुस्सा हो गए और उन्होंने डीएसपी देविंदर सिंह को एक थप्पड़ मारा और उन्हें पुलिस वैन में बिठाने का आदेश दिया। 57 साल के देविंदर सिंह कश्मीर में चरमपंथियों से लड़ाई में हमेशा आगे-आगे रहे हैं. 90 के दशक में कश्मीर घाटी में चरमपंथियों ने भारत सरकार के ख़िलाफ हथियार बंद विद्रोह की शुरुआत की थी। देविंदर सिंह भारत प्रशासित कश्मीर के त्राल के हैं। और त्राल को चरमपंथियों का गढ़ माना जाता है। बुरहान वानी भी यहीं का था।

एक अधिकारी ने बताया कि 90 के दशक में देविंदर सिंह ने एक आदमी को भारी मात्रा में अफीम के साथ गिरफ्तार किया लेकिन पैसे लेकर अभियुक्त को छोड़ दिया और अफीम को बेच दिया. उनके ख़िलाफ जाँच बैठी लेकिन फिर मामला रफा दफा हो गया.
90 के दशक में देविंदर की मुलाक़ात पुलिस लॉकअप में अफजल गुरु के साथ हुई. आरोप है कि देविंदर ने अफजल गुरु को अपना मुख़बिर बनाने की कोशिश की. अफजल गुरु को 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए हमले का दोषी पाया गया और उन्हें 9 फरवरी 2013 को फांसी दे दी गई.
उसी साल अफजल का लिखा हुआ एक ख़त मीडिया में आया. सुप्रीम कोर्ट में अपने (अफजल गुरु) वकील को लिखे ख़त में अफजल ने कहा था कि अफजल अगर जेल से रिहाई हो भी गई तो भी देविंदर सिंह उन्हें परेशान करते रहेंगे. उसी ख़त में अफजल ने लिखा था, श्श्देविंदर ने मुझे एक विदेशी चरमपंथी को दिल्ली साथ ले जाने के लिए मजबूर किया, फिर उन्हें एक रूम किराए पर दिलवाने और पुरानी कार ख़रीदने के लिए कहा
देविंदर सिंह की गिरफ्तारी के बाद कई सवाल उभर कर सामने आ रहे हैं. अगर सिंह का रिकॉर्ड ख़राब रहा है तो फिर उनको आउट ऑफ टर्न प्रमोशन क्यों दिया गया. अगर उनके ख़िलाफ जाँच चल रही थी तो फिर उन्हें कई संवेदनशील जगहों पर तैनात क्यों किया गया. अगर पुलिस को ये बात पता थी कि वो लालची हैं और आसानी से सौदा कर सकते है तो फिर 2003 में उन्हें यूएन शांति सेना के साथ पूर्वी यूरोप क्यों भेजा गया.
अगर बड़े अधिकारियों को उनकी गतिविधियों की जानकारी थी तो फिर उन्हें रक्षा मंत्रालय के अधीन आने वाले एयरपोर्ट पर एंटी हाईजैकिंग विंग में क्यों तैनात किया गया।

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