रक्षा बंधनः शहीद ए आजम का बहन को आखिरी खत

प्रिय बहन, सेंट्रल जेल, लाहौर 17 जुलाई 1930

कल रात बट्टू (बटुकेश्वर दत्त) को किसी और जेल में भेज दिया गया। अभी तक हमें पता नहीं चला है कि उसे कहां ले गए हैं। मैं तुमसे गुजारिश कर रहा हूं कि किसी हाल में बनारस छोड़कर लाहौर मत जाना। बट्टू से अलग होना मैं भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहा हूं। असल में वह मुझे भाइयों से अधिक प्रिय है और ऐसे दोस्त से अलग होना बहुत कठिन है। तुम हर हाल में धैर्य से काम लेना और हिम्मत बनाए रखना। चिंता करने की बात नहीं है। यहां से बाहर निकलने पर सब कुछ अच्छा हो जाएगा।
-तुम्हारा भगत सिंह

अशफाक उल्ला ने लिखा था- आप भी मुझे नहीं भूलेंगी

माय डियर दीदी, फैजाबाद जेल,16 दिसंबर 1927
मैं अगली दुनिया में जा रहा हूं, जहां कोई सांसारिक पीड़ा नहीं है और बेहतर जीवन के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ेगा। मैं मरने वाला नहीं, बल्कि हमेशा के लिए जीने वाला हूं। अंतिम दिन सोमवार है। मेरा आखिरी बंदे (चरण स्पर्श) स्वीकार करो… मुझे गुजर जाने दो। आपको बाद में पता चलेगा कि मैं कैसे मरा। भगवान का आशीर्वाद हमेशा आपके साथ रहे। आप सबको एक बार देखने की इच्छा है। यदि संभव हो तो मिलने आना। बख्शी को मेरे बारे में बताना। मैं आपको अपनी बहन मानता हूं और आप भी मुझे नहीं भूलेंगी। खुश रहो… मैं हीरो की तरह मर रहा हूं।
-तुम्हारा अशफाक उल्ला

भगत सिंह ने कहा था- हर हाल में धैर्य से काम लेना

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