सिंगोरी न्यूजः साहित्य का वो शिखर जिसे भूतो ना भविष्यते कहा जाता है। साहित्य प्रेमियों के पूज्यनीय वंदनीय भजन सिंह सिंह को गढ़वाली साहित्य का युग पुरूष और उत्तराखंडी कबीर जैसी संज्ञाएं हासिल हैं। उनकी पुस्तक है सिंहनाद।
पुस्तक का नाम- सिंहनाद
लेखक भजन सिंह सिंह
प्रकाशन वर्ष- 1930, गढ़वाली प्रेस देहरादून
एक नजर साहित्य साधना के शिखर पर
भजन सिंह ‘सिंह’ जी का जन्म 29 अक्टूबर 1905 पौड़ी के कोट ब्लाक के कोटसाड़ा गांव में हुआ। उनके साहित्य में स्वतन्त्रता पूर्व का युग ‘सिंह’ युग के नाम से जाना जाता है। सिंह ने सुधारवादी आंदोलन का नेतृत्व किया। भजन सिंह ‘सिंह’ की पुस्तकों को जाने माने पुरातत्वविद एवं भाषाविद डॉ. यशवंत सिह ‘कटोच’ ने ग्रंथ की तरह प्रस्तुत किया है। यह ग्रन्थ पाठक को गढ़वाली भाषा के प्रबल समर्थक कवि भजन सिंह ‘सिंह’ के कृत्तित्व का साक्षात्कार कराता है। गढ़वाली साहित्य में ‘सिंहनाद’ ने अद्वितीय लोकप्रियता हासिल की। इसे कविवर की श्रेष्ठतम कृति बताया जाता है।
सिंह जी की रचनाएं ‘सिंहनाद’ और ‘सिंह सतसई’ मूलतः काव्य कृतियां हैं।
भजन सिंह ‘सिंह’ लीक से हटकर चलने वाले रचनाकार रहे हैं। ‘सतसई’ में परंपरा 700 दोहों की है, परन्तु उनकी काव्यकृति ‘सिंह सतसई’ में 1259 दोहे शामिल हैं। वे उर्दू में अच्छी शायरी करते थे।