सिंगोरी न्यूजः नई पीढ़ी कई बार ऐसे कृत्यों को कर गुजरती है जिसका उन्हें क्षोभ तो जरूर होता होगा लेकिन तब सारी कहानी खत्म हो चुकी होती है। उद्वेग में विषाख्त लेने वाले जब जिंदगी के लिए तड़पते हुए अपने किए पर पछतावा करते हैं तो तब लगता है कि वह सबसे बड़ी गलती कर गए हैं। शायद यही तड़प फंदा लगाने वालों को भी होती होगी, यह तय है। लेकिन उनके पास तड़पने तक समय नहीं रहता। गत दिवस सूबे की राजधानी देहरादून की नेहरू काॅलोनी में एक घर के इकलौते चिराग ने जरा सी बात पर पूरे परिवार की ंिजंदगी में अंधेरा कर दिया। उसने सिर्फ इसलिए अपनी जान दे दी कि उससे मोबाइल बंद करने को कहा गया था। उसने मोबाइल गेम खेलने के चक्कर में जिंदगी का खेल ही खत्म कर दिया। एक छोटी सी बात पर उसके इकलौते चिराग ने फंदा लगाकर अपनी जान दे दी। मृतक किशोर का नाम अस्मित यादव था और उसकी उम्र 15 वर्ष थी। उसके पिता आशीष यादव है वह ट्यूटर हैं।
दुर्योग यह है कि नई पीढ़ी में यह प्रवृति कम और खत्म होने के बजाए अपनी जगह स्थिर है। आए दिन इस तरह के वायके परिजनों से लेकर पूरे समाज को झकझोरते रहते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या किशोरों की इस आत्मघाती प्रवृति को कैसे खत्म किया जाए। इस पर सोचा जाना जरूरी है। हमें अपने भीतर और अपने घर से ही इस दिशा में एक्सरसाइज करनी होगी, ताकि रोशनाई जिंदगी में बिना किसी बड़ी वजह है अंधेरा फैलने से बच जाए।