पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के ‘माल्टा खाओ’ प्रतियोगिता के मायने

देहरादून। माल्टा खाओ प्रतियोगिता के बहाने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भाजपा सरकार की ‘पहाड़ विरोधी नीतियों’ पर प्रहार किया है। अपने आवास पर माल्टा खाओ प्रतियोगिता आयोजित करते हुए उन्होंने कहा कि पहाड़ों में पेड़ों पर माल्टा सड़ रहे हैं, सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य इतना कम है कि किसान अपना माल्टा विक्रय केंद्रों तक ले जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।

सात रूपए किलो है माल्टा का समर्थन मूल्य
ओल्ड मसूरी रोड स्थित अपने आवास पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने ‘श्रीमती दानी देवी मेमोरियल ट्रस्ट’ के जरिये माल्टा खाओ प्रतियोगिता आयोजित की। इस बारे में पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि यह पहाड़ में माल्टा का सीजन है। किसानों के खेतों में माल्टा की फसल तैयार खड़ी है। सरकार ने सात रुपये किलो समर्थन मूल्य घोषित किया है, जबकि गलगल पहाड़ी नीबू का रेट चार रुपये किलो घोषित हुआ है। इस रेट पर किसान सौ से डेढ़ सौ किमी दूर खरीद केंद्रों तक माल्टा नींबू ले जाकर बेचने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। जिस वजह से उनकी फसल खेतों में बर्बाद हो रही है।

भाजपा पर हरदा का प्रहार
उन्होंने भाजपा सरकार की नीति पर प्रहार करते हुए कहा कि सरकार अपने मद में मस्त है, किसानों की समस्याओं से उसका कोई लेना-देना नहीं है। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि पंजाब तथा हिमाचल को ले लीजिए, पंजाब में हर घर में कीनू टेबल पर छजा मिल जाएगा, इसी तरह हिमाचल प्रदेश में अपने फलों के उत्पादन को प्रोत्साहित करने का चलन है। लेकिन उत्तराखंड की सरकार में बैठे लोगों को इससे कोई लेना-देना नहीं है।

पहाड़ी जिलों मंे माल्टा भरपूर
गौरतलब है कि पहाड़ी जिलों में माल्टा का अच्छा उत्पादन होता है। किसान माल्टा के समर्थन मूल्य घोषित करने की मांग करते रहे हैं। राज्य सरकार ने समर्थन मूल्य घोषित भी कर दिया है। माल्टा का समर्थन मूल्य सात रुपये किलो और पहाड़ी नींबू गलगल का समर्थन मूल्य चार रुपये प्रति किलो है। समर्थन मूल्य घोषित करने के साथ ही खरीद के दौरान इस पर होने वाली कटौती की घोषणा भी उद्यान विभाग कर चुका है। इस हिसाब से किसान को छह रुपये किलो के करीब माल्टा का मूल्य मिल पाएगा।

ढुलाई की लागत पड़ती है भारी
इसके खरीद केंद्र सीमित स्थानों पर बनाए गए हैं। दूरस्थ गांवों के किसानों के लिए इसकी दूरी सौ से डेढ़ सौ किमी तक होती है। पहले माल्टा की तुड़ाई, फिर ढोकर सड़क पर लाना और फिर वाहन के माध्यम से खरीद केंद्र तक ले जाने में किसान की लागत खरीद मूल्य से भी अधिक आ जाती है। इस मजबूरी में किसान पेड़ों पर लगे माल्टा को तोड़कर केंद्रों तक ले जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है।

पूर्व सीएम हरदा का माल्टा नीति पर प्रहार
किसान की इस मजबूरी को समझते हुए पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मौके पर चैका लगाया है। श्री रावत पहाड़ी उत्पादों को लेकर अक्सर इस तरह के कार्यक्रम आयोजित करते रहते हैं। जिसमें वह बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं का मजमा जुटा लेते हैं। एनएसयूआई से लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं को ही नहीं बल्कि दूसरे दलों के नेताओं को भी ऐसे आयोजनों में वह आसानी से जुटा लेते हैं। उनका यह हुनर एक तीर से दो सटीक निशाने लगाने में सफल साबित होता रहा है।

हल्के आयोजन का बड़ा संदेश
एक तरफ माल्टा खाने की प्रतियोगिता कर वह एक हल्का फुल्का सा आयोजन करने का संदेश देते हैं। जिसमें सरकार की माल्टा किसान विरोधी नीति पर सीधा प्रहार होता है। दूसरी तरफ पार्टी के अंदर दूसरे गुटों के नेताओं पर उनका यह आयोजन अपरोक्ष प्रहार कर जाता है। बड़े-बड़े आयोजनों में पार्टी के बड़े पदाधिकारी जितना मजमा नहीं जुटा पाते हैं, उससे अधिक भीड़ हरीश रावत माल्टा खाने जैसी हल्की-फुल्की प्रतियोगिता में जुटा लेते हैं।

वाकई संकट में है माल्टा किसान
यह तो नेताओं का राजनीतिक खेल है, लेकिन इस बात पर कोई दो राय नहीं है कि माल्टा किसान संकट में हैं। जो समर्थन मूल्य सरकार दे रही है, दूर दराज के किसान उसके लिए केंद्रों तक आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। यही कारण है कि राज्य में माल्टा का उत्पादन लगातार गिर रहा है, इसके बावजूद जो किसान उत्पादन कर रहे हैं, उन्हें खाली हाथ ही रहना पड़ रहा है।
वरिष्ट पत्रकार शंकर सिंह भाटिया जी की कलम से

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