सिंगोरी न्यूजः गुजरे दिन जिला रूद्रप्रयाग से एक दुखद खबर आई। यहां उर्जा निगम में धियाड़ी पर काम करने वाला 35 वर्षीय सुरेश सिंह पंवार बिजली की लाइन पर आए फाल्ट को सुधारने पोल पर चढ़ा। वहां करंट लगा और धड़ाम से गिर गया जमीन पर। और कहानी खतम। जिनका वह काम करता था उन्होंने थोड़ा संवेदनाएं जताई और हो गया। इससे अधिक हो भी क्या सकता है विभाग की ओर से। वह पक्का यानी नियमित कर्मचारी थोड़े ही है। वह संविदा का मजदूर है। पता नहीं इस मजदूरी को संविदा क्यों कहा गया।
वहां आसपास के लोगों को पूछने से पता चला कि मंगलवार रात नगर में बिजली गुल हो गई थी। बुधवार सुबह करीब साढ़े 6 बजे संविदा कर्मी 35 वर्षीय सुरेश सिंह पंवार निवासी तरवाड़ी रुद्रप्रयाग लाइन का फॉल्ट देखने सुविधानगर की ओर गए। इस दौरान वह बिजली के पोल पर चढ़े और कुछ ही देर में पोल से जमीन पर गिर गए। वह नीचे कैसे गिरे इसका पता नहीं, लाइन पर करंट दौड़ा या फिर वह खुद ही फिसल गए। लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है, वह तो जमीन पर गिरते ही बेसुध हो गए थे। बोलने की भी स्थिति में नहीं थे। अब कौन बताएगा कि हुआ क्या था।
जिला अस्पताल से रैफर हुए तो जैसे तैसे तो इस ध्याड़ी के मजदूर को बेस अस्पताल श्रीनगर पहुंचाया गया। यहां से भी डॉक्टरों ने उन्हें जोलीग्रांट रेफर दिया।
सूबे में इमरजेंसी का नाम लेकर जिस एअर लिफ्टििंग के खम ठोके जाते हैं वह गरीब गुरबों के लिए थोड़े हैं। वह तो रसूकदारों के लिए हैं। और इन्हीं व्यवस्थाओं में संविदा के इस मजदूर ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। सुरेंश के घर में क्या हालत हैं यह बताने की तो आवश्यकता ही नहीं है। लेकिन सत्य तो यह है कि इस प्रदेश में सुरेश जैसी गुमनाम मौत मरने वालों की फेहरिस्त बहुत लंबी है।
शायद ही कोई ऐसा जनपद होगा जहां उर्जा निगम के लाइनों पर सुरेश की तरह खामोशी के साथ काम करने वाले नहीं होंगे। इनमें से कई कर्मचारी ऐसे होते हैं जिन्हें नियमित लाइनमैन दो ढाई हजार रूपए देकर अपना काम सौंपकर घर बैठ जाते हैं। काम की तो कोई बात नहीं लेकिन हालात तब खराब होते हैं जब कोई हादसा हो जाता है। नियमित लाइनमैन के दिए दो ढाई हजार में अपना परिवार चलाने वाले यह मजदूर अपने पीछे छोड़ जाते हैं बिलखता हुआ बेहद कच्चा और बेवश परिवार। पौड़ी जनपद मे तो इसके दसियों उदाहरण हैं। जिनके परिवार की विवशता पर पूरा समाज चटखारे लेता है। वह रोशनी फैलाने का काम करते हैं और अंधेरी मौत के हकदार बनते हैं। इनके लिए ना तो मानवाधिकार हैं ना और ना मजदूरों के कोई संगठन। श्रद्धांजलि सुरेश पंवार, उम्मीद करते हैं तुम इस तरह गुमनाम मौत के आखिरी हकदार होंगे। फोटो प्रतीकात्मक।