पौड़ी से वरिष्ठ पत्रकार देवेंद्र बिष्ट
,उत्तराखंड की राजनीति में जब चर्चाये होती है तो वो ज्यादातर कांग्रेस और भाजपा के बीच सिमट जाती है,,हो भी क्यों नही,,जनता ने राज्य बनने के बाद हुये कुल चार विधानसभा चुनाव में दो दो बार अवसर इन्ही दोनों दलों को दिए है ।इस बार आम आदमी पार्टी के उत्तराखंड की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा से 2022 में होने वाले चुनाव के लिए एक नई बहस ने जन्म दिया है कि राज्य की जनता जिसने बारी बारी से भाजपा कांग्रेस को गद्दी सौंपी है 2022 में वही सिलसिला जारी रहेगा या इस बार यह सिलसिला टूटेगा,,क्या आप वही करिश्मा कर पायेगी जैसे उसने दिल्ली में किया??बहस का सिलसिला का आगे सिरा यह भी पकड़ता है कि आप यदि पंजाब विधानसभा जैसे भी प्रदर्शन किया तो वह कांग्रेस या भाजपा में से किसको पीछे धकेलगी।यदि उससे कम भी प्रदर्शन रहा तो किसको नुकसान पहुंचाएगी।
अब जरा उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के इतिहास पर गौर करें।2002 के पहले चुनाव में किसीको भी अंदाजा नही था कि कांग्रेस की सरकार बनेगी,क्योंकि कांग्रेस में धड़ेबाजी ने एन चुनाव में टिकट के लिये दो फाड़ की स्तिथि आ गयी थी।महाराज गुट के अड़ जाने पर आधा दर्जन से अधिक सीटो पर घोषित प्रत्याशियों को बदला गया।दूसरा भाजपा को यह विश्वास था कि केंद्र की भाजपा की अटल सरकार के समय नये राज्य बनने का श्रेय के कारण उसे फायदा मिलना निश्चित है।लेकिन अंतरिम सरकार के लगभग सवा साल में दो मुख्यमंत्री बन गये और अंदरखाने बहुत कुछ ठीक नही था,लेकिन फिर भी बहुत यकीन राजनितिक प्रेक्षकों नही था कि कांग्रेस ठीक मैजिक नम्बर तक पहुंचेगी।
(2ः52 च्ड, 9/5/2020) क्मअमदकत ठपेजः 2002 के पूर्व नये बने राज्य में पी. सी,सी.अध्य्क्ष का चुनाव वाया उत्तर प्रदेश के कथित अंदरूनी गणित के हिसाब से हरीश रावत को प्राप्त हो गयी थी।कहा तो यही भी जाता रहा कि एक बड़े के नजदीकी होने के कारण यह संभव हो पाया,क्योंकि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्य्क्ष का चुनाव हारने के बाद उन्होंने यु,पी, अध्य्क्ष के लिए भी अपना प्रत्याशी उतार दिया था। बाद में बैठी गणित में उत्तराखंड में उन बड़े नेता की पसंद से उत्तराखंड पी, सी,सी,चीफ का मनोयन हुआ।भले उस निर्विरोध चुनाव होने के बाद भी शिकायत में आंसू बहे, होर्डिंग्स बैनर फाड़े गये।इन सबके बाद भी हरीश रावत ने पूरे उत्तराखंड में व्यापक जनसम्पर्क अभियान चलाया।कांग्रेसजनों में उन्होंने जान फूंक दी।
(3ः22 च्ड, 9/5/2020) क्मअमदकत ठपेजः 2002 के चुनाव में कांग्रेस को तमाम आकलनों से अलग क्लियर कट बहुमत मिल गया।इसके बाद किंतु परंतु के बाद दिग्गज नेता नारायण दत्त तिवारी शुरुवाती हिचक के बाद हाई कमांड के निर्देश पर मुख्यमंत्री बने।तिवारी जी ने पूरे पांच साल अपने कार्यकाल को पूरा किया।यह एक अलग कहानी है कि इन पांच सालों में भी उन्हें अंदरूनी सियासत से जूझना पड़ा।
सन 2007 से से चुनाव से पूर्व उत्तराखंड में एक नया शब्द गड़ा गया, था“मित्र विपक्ष“।ये क्यों गड़ा गया इसकी भी कई कहानियां है ।2007 चुनाव से पूर्व गढ़ गौरव नरेंद्र सिंह नेगी के एक गीत ने सियासी हलको में धूम मचा दी।इस गीत की प्रतिध्वनि 2007 के विधानसभा चुनाव में सुनी गई।2007 में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी,लेकिन उसे बहुमत प्राप्त नही हुआ।तब निर्दलीयों और यु,के,डी, से समर्थन से भाजपा सरकार बनी।लेकिन जनरल खंडूरी,निशंक और पुनः जन.खंडूरी के रूप में मुख्यमंत्री परिवर्तित हुये। गुटबाजी काफी मुखर थी।लेकिन इस सबके बाद भी जनरल के नेतृत्व में2012 के चुनाव में सत्ता में रहते इतना अच्छा प्रदर्शन पहली बार किसी दल ने किया,लेकिन जनरल खुद कोटद्वार से चुनाव हार गये और बहुमत से तीन चार सीट पीछे रह गयी भाजपा।कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभरी भले भाजपा और उसके बीच एकाध सीट का अंतर था। जिसने इस राज्य निर्माण के लिए सब कुछ किया वह यूकेडी भी हासिए पर सरक गया। अहम सवाल यह है कि जहां क्षेत्रीय दल को हासिया भी नसीब नहीं हो सका वहां की जनता केजरीवाल के दल पर भरोसा कर पायेगी। जारी……..