झूठे हैं वो लोग जो कहते हैं कि पहाड़ के गांवों में ‘रोजगार’ नहीं है

रमेश नेगी, एक्सक्लूसिव

उत्तराखंड के वो लोग झूठे हैं और कतई गलत भी हैं, जो कहते हैं कि पहाड़ों के गांवों में कुछ नहीं रखा है। यहां पिछड़ापन है, संभावनाएं शून्य हैं, जिन्होंने पहाड़ के हर व्यक्ति के मन में निराशा का भाव भर दिया। जो तरक्की के लिए सिर्फ पलायन को ही एकमात्र विकल्प मानते हैं। वो लोग भी कतई गलत है जो कहते हैं कि लाॅकडाउन में उत्तराखंड के जो प्रवासी अपने घरों को लौटे हैं उनके लिए यहां कोई रोजगार नहीं हैं। यहां कोई काम नहीं है। उन गलत लोगों को और इस तरह के निराशावाद के शिकार लोगों को पौड़ी जनपद के ओड़डा गावं निवासी धीरेंद्र सिंह रावत के पास उनके प्लांट में जाना चाहिए। वहां समझ में आ जायेगा कि पहाड़़ के गांवों को आधुनिकता की रफ्तार के आगे शून्य बताने वाले कितने गलत हैं। पहाड़ में तरक्की की संभावनाएं और यहां वैभव वहां दिख जायेगा।
पौड़ी ब्लाक के ओड्डा गांव निवासी धीरेंद्र सिंह रावत ने जब अपने गांव में काम करने की सोची तो गांव ही नहीं क्षेत्र के लोगों को उनकी नासमझी पर तरस आया होगा। गांव लौटने से पहले उनका कारोबार दिल्ली में है। लेकिन गांव के प्रति उनका लगाव और उजड़ते गांवों की पीड़ा उन्हें फिर से अपनी माटी में खींच लाई। यही कारण रहा कि देश की राजधानी दिल्ली जैसे मैटोपोलिटिन सिटी में वैल सैटल होने के बाद भी वह अपनी मिट्टी में लौटे। ऐसा जज्बा बिरलों में ही होता है। उन्होंने अपने गांव में खाली पड़ी अपनी जमीन को हरा भरा करने का फैसला लिया। और फिर शुरू हुआ ओड़डा गांव के उस माॅडल का अभियान जो आज पूरे प्रदेश में ग्रामीण विकास की एक जागती और जगाती मिशाल बना है।

पौड़ी जनपद के ओड़डा गांव में धीरेंद्र रावत जी के सोलर प्लांट का विहंगम दृश्य


योजना के तहत अपनी जमीन पर उन्होंने सोलर प्लांट के लिए प्रयास किए तो शुरू में तमाम दिक्कतें भी सामने आई। कभी शासन की स्वीकृति तो कभी प्रशासन की अनापत्ति, जाने क्या क्या नहीं उन्हें झेलना पड़ा। लेकिन माटी के इस लाल ने हिम्मत नहीं हारी। कभी निराशा जरूर आई होगी, लेकिन हारना तो उन्होंने सीखा ही नहीं। तो फिर अपने लक्ष्य से लौटते भी कैसे। आज ओड़डा गावं का यह प्लांट बडे़ शहरों में संचालित होने वाले अच्छे खासे संस्थानों की न सिर्फ बराबरी कर रहा है, बल्कि उन्हें मात भी दे रहा है। वर्तमान में इस प्लांट में 15 स्थानीय लोगों को रोजगार मिला हुआ है। प्लांट के सारे तौर तरीके वहीं हैं जो किसी बड़े शहर के नामी प्लांट में होते हैं। रचनात्मक और एक दूसरे को आगे बढ़ाने की सोच रखने वाले धीरेंद्र रावत तो अब सोलर प्लांट के क्षेत्र में अपने आप में एक यूनिवर्सिटी बन गए हैं। क्षेत्र के नहीं अन्य जनपदों के वो लोग भी उनके पास जानकारियों के लिए जाते हैं जिन्हें यह बात समझ आ गई है कि पहाड़ के गांवों में भी बहुत कुछ है। अब कई जगहों पर उनके परामर्श से प्लांट लग रहे हैं।

गांव की बंजर जमीन को उर्वरा बनाने वाले ओड्डा गांव निवासी धीरेंद्र सिंह रावत


धीरेंद्र रावत कहते हैं किसी भी काम को शुरू में दिक्कतें आती हैं। उन्हें भी शासन से लेकर प्रशासन तक की कई पेचीदगियों का सामना करना पड़ा। लेकिन करने पर सब कुछ आसान हो जाता है। अपने साथ दूसरे को बढ़ाने की सोच रखने वाले धीरेंद्र रावत कहते हैं कि अनुभवों से हमने जो जानकारी हासिल की है उसका लाभ हर उस बंदे को मिले जो इस काम को करना चाहते हैं। वह कहते हैं कि सोलर उर्जा के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। इससे जुड़कर बड़ी संख्या में बेरोजगारों को रोजगार मिल सकता है। वह चाहते हैं कि इस कार्यक्रम को शुरू करने में जो परेशानियां उन्होंने झेली हैं वह नए लोगों को ना उठानी पड़े। इसके लिए उन्होंने सोशल मीडिया पर बाकायदा उन्होंने अपने नंबर भी जारी किए हैं।

पौड़ी जनपद के ओड़डा गांव में धीरेंद्र रावत जी के सोलर प्लांट का विहंगम दृश्य

वह कहते हैं कि सूरज की रोशनी तो अक्षय उर्जा है। वह कभी खत्म होने वाली नहीं है। और बिजली की जरूरत भी दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। ऐसे में यह काम भी कभी ना खत्म होने वाला काम है। इसमें रिस्क भी अन्य कामों की अपेक्षा कम हैं। बेहतर यह है कि अब सरकार ने युवाओं को रोजगार देने के लिए भी इस योजना को और बेहतर ढंग से उतारा है। पहले की अब अपेक्षा इस योजना की स्वीकृति मिलने और क्रियान्वयन में कई आसानी हो गई है। सरकार इसके लिए प्रशिक्षण से लेकर अनुदान और छूट दे रही है। तो इससे बेहतर अब क्या हो सकता है। जाहिर तौर पर त्रिवेंद्र सरकार ने पहले की अपेक्षा इस परियोजना में उदारता दिखाई है उसने पिछली पेचीदगियों को समाप्त कर दिया है। तो हर बार एक ही बात अघाते रहना कि पहाड़ के गांवों में कुछ नहीं है, निठठलेपन की खीज निकालने के लिए सरकार पर दोष मढ़ते रहना गलत है। वाकई वो लोग गलत हैं जो कहते हैं कि पहाड़ के गांवों में कुछ नहीं है। अगर कुछ नहीं है तो ओड़डा गांव में बीते कुछ सालों में ऐसा क्या हुआ कि आज वह पूरे प्रदेश में एक नजीर की तरह पेश किया जा रहा है। पहाड़ के गांवों मंे बहुत कुछ है जरूरत धीरेंद्र रावत जैसे जज्बे की है, जिन्होंने साबित कर दिया कि पहाड़ की कंदराओं में भी बहुत कुछ है। लीड फोटो में अपने साथियों के साथ प्लांट में धीरेंद्र रावत (मध्य में)

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