खिचड़ी पर्व

*खिचड़ी पर्व* मकर-संक्रांति की शुभकामनाऐं।

आज सभी लोग खिचड़ी की शुभकामनाएँ प्रेषित कर रहे होंगे और करना भी चाहिये त्यौहार जो है अपना मगर रसोई के चूल्हे में पकने वाली खिचड़ी के अलावा और भी खिचड़ी पकती है उस और ध्यान कम ही जाता है। मन के चूल्हे मे संवेदन की आँच मे भाईचारा और प्रेम की सामाजिक सौहार्द की,रिश्तों के मेल की खिचड़ी पकती है या नही बिषय शोध और चिन्तन का ही नही आत्मसात करने का है तभी खिचड़ी के त्यौहार की प्रासंगिकता पल्लवित हो पाऐगा अर्थात सभी खाध्य घटकों का एक साथ मिल-मिलाकर पकाना ।

खिचड़ी को शरीर विज्ञान की भाषा मे सुपाच्य आहार के रुप में रोग निवारण हेतु खाने की सलाह अनादि काल से दी जाती रही है,और आयुर्वेद के अनुसार खिचड़ी त्रिदोषनाशक मानी गई है अब देखना होगा यह खिचड़ी का अनुपम त्यौहार हमारी संस्कृति और सभ्यता में ब्याप्त दोषों का नाश करके समाज का हाजमा कितना दुरुस्त बना पाऐगा ।

आज वर्तमान दौर में हमारी संस्कृति और प्रकृति में बड़ा बदलाव आ चुका है। पाश्चात्य रहन-सहन,खान-पान हमारे तन-मन में अपना डेरा डाल चुका है चाउमीन, बर्गर, पिज्जा, कोका -कोला के इस भवसागर में क्या खिचड़ी की नय्या पार उतर पाऐगी ?

कोशिशे मर्दा हिम्मते खुदा! आज खिचड़ी को राष्ट्रीयता की थाली में परोसने का पुनीत कार्य हो चुका है क्या राष्ट्रीय भोजन का खिताब प्राप्त कर खिचड़ी अपने हंडिया में राष्ट्रीय ऐकीकरण का हाजमा दुरुस्त कर पाऐगी या इसे भी तेरी खिचड़ी तुझे मुबारक कहकर सैकुलर्रिज्म और सामप्रदायिकता के चूल्हे में ही स्वाहा किया जाऐगा ?

आजकल एक और खिचड़ी पकने का चलन है जिसकी चर्चा बहुत आम हो गई है। मगर अन्तर इतना है कि यह खिचड़ी किसी साधारण चूल्हे मे, किसी साधारण रसोई में, किसी साधारण रसोईऐ द्वारा नही बनाई जाती है । यह खिचड़ी किसी खास चूल्हे में, किसी खास रसोईघर में, किसी खास रसोईऐ द्वारा किसी खास मकसद से बनाई जाती है । इसका असर सर्वदोष नाशक होता और समयानुकूल सुविधापरक होता है,यह खिचड़ी है राजनीति की खिचड़ी बावजूद इतनी खिचड़ी पकाने और परोसकर खिलाने के बाद भी हमारी राजनीतिक ब्यवस्था दोषमुक्त नही हो पाती है । फिर कोई बीरबल फिर किसी अकबर के लिऐ पुनः खिचड़ी पकाने में ही अपना हित और अपना कौशल दिखाकर ख्याति प्राप्त हो जाऐगा यही हमारी राजनीतिक ब्यवस्था का चरमोत्कर्ष कहलाऐगा ।

जगदीश गढ़वाली डिम्पल रौतेला

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