सिंगोरी न्यूजः पदोन्नति में आरक्षण ना हो इसके लिए इन दिनों सूबे मंें कर्मचारी अधिकारी आंदोलनरत हैं। सीधे तौर पर देखा जाए तो यह सब घर के भीतर चल रही आपसी लड़ाई जैसा है। मानो शरीर का एक हिस्सा दूसरे हिस्से पर प्रहार कर रहा है। चोट चाहे जिधर से भी हो दर्द तो शरीर को ही होना है। चाहे जनरल ओबीसी हों या एससी एसटी, आखिर ये सब एक ही कुनबे से तो ताल्लुक रखते हैं। जी हां कुनबा तो एक ही है। यदि कहीं पर कर्मचारी संगठन की बात आयेगी तो सारे लोग एक बैनर के नीचे एकजुट दिखेंगे। एक सुर में अपनी आवाज उठायेंगे। इस अंादोलन के दौरान ऐसा बताया गया कि जनरल ओबीसी के भी कुछ कर्मचारी साथ नहीं आए, कार्यालयों में काम करते रहे, उनके मुंह पर कार्यालय मंे ही कालिख पोती गई, बिच्छूघास से डराया गया, जयचंद,गद्दार और ना जाने क्या क्या संज्ञा दी, जो बिखराव की नाराजगी और आंदोलन की उग्रता में स्वाभाविक भी था। कई जगहों पर दूसरे वर्ग के कर्मचारियों पर फब्तियां मारने व विभागीय काम में व्यवधान की भी शिकायतें आई। इन सब के बीच एक अच्छा और सुखद संदेश आया है। जिस पर ध्यान व अमल जरूरी है।
कर्मचारी नेता और जनरल ओबीसी ऐसोसिएशन के पदधिकारी जसपाल सिंह रावत ने अपनी वाॅल पर पौड़ी शाखा के पदाधिकारियों की ओर से एक ऐसा संदेश दिया है जो वाकई काबिलेगौर तो है ही सराहनीय भी है। उन्होंने जनपद शाखा पौड़ी गढ़वाल के पदाधिकारियों से अनुरोध में लिखा है।
कि अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे क्रांतिकारी नगरी पौड़ी के सामान्य एवं ओबीसी वर्ग के समस्त साथियोंध्पदाधिकारियों से हमारी हाथ जोड़कर अपील एवं विनती है कि अब इस आंदोलन मे बहुत ही संयम एवं प्रेमपूर्वक तरीके से गांधी गिरी तरीकें से अपने ऐसे साथियों से जो किसी कारण वश आंदोलन, धरना कार्यक्रम में प्रतिभाग नहीं कर पा रहे हो अथवा किसी दबाव मे अपने कार्यालय में बैठकर कार्य कर रहे हो या किसी अन्य कारण से अब तक आंदोलन से न जुड़ पाए हों, के साथ बहुत सम्मानजनक तरीके से पेश आते हुये अत्यंत सभ्यता, प्रेम पूर्वक उन्हें समझाते हुए इस आंदोलन से जोड़ने का प्रयास किया जाए। किसी भी स्थिति में किसी भी साथी से बलपूर्वक गलत व्यवहार न किया जाय। साथ ही हमारे अपने अपने विभागों, कार्यालयों के अन्य वर्ग के साथियों को शासकीय कार्यों के निर्वहन हेतु किसी प्रकार का कोई अवरोध उत्पन्न न किया जाए। पौड़ी के सभी क्रांतिकारी साथीगण प्रमुखता से इन बातों का ध्यान रखते हुए आंदोलन की संवेदनशीलता के मध्य नजर ऐसा कोई कृत्य नहीं करेंगे। जिससे आंदोलन में किसी प्रकार का अवरोध उत्पन्न हो तथा यह भी सुनिश्चित किया जाए कि किसी भी साथी के सम्मान को कोई ठेस ना पहुंचे। यह बात उन्होंने अपनी वाॅल पर लिखा है। और यह बात इस आंदोलन के दौरान हुई सभी बातों और निर्णयों की अपेक्षा ज्यादा सुलझी हुई, लोकतांत्रिक, व्यवहारिक और सौहार्दपूर्ण है। जाहिर तौर पर इस तरह का नेतृत्व ही किसी आंदोलन को उसके सुखद अंजाम तक पहुंचाने की क्षमता रखता है। धैर्य रखें, आपा ना खोएं ताकि आपसी भाईचारा सौहार्दा भी बना रहे।
और आखिर में चार लाइनें भी साझा की हैं।
दिन बीत जाते है सुहानी यादें बनकर,
बाते रह जाती है कहानी बनकर,
पर दोस्त तो हमेशा दिल के करीब रहते है,