अवा ! वूं तैं यु दिलासू दिलाँ कि तुमारि खैंची केर पर हम अटल छवां !

प्रख्यात साहित्यकार आदरणीय नरेंद्र कठैत जी की वाॅल से साभार।
करोना ! वुुन त कै बि निरभै बिमार्यू हम नौ नि लेंदां! जनि-कनि बिमार्यूं तैं त हम पच्ये देंदा! पर य बिमारि कथगा खरतनाक च यि बातौ अण्दाज प्रधान मंत्री मोदी जी का ब्वल्यां यूं सब्दू सि लगै सक्दाँ कि भयूं ! ‘महा भारतौ जुद्ध अठारा दिनू मा लड़ै ग्या! यिं लड़ै लड़ण मा इकीस दिन लग्णन!
इना संकटै घड़ि मा हमारि जिमेदारि बणदि कि हम वूंकि बात पर ध्यान द्याँ। यिं बिमारि तैं हैंकि हैजा माण ल्या! पुराणा लोग बतौंदन तबारि हैजा हमारु कथगा नुकसान कर ग्या। जु घौर बूण छोड़ी भाग ग्ये छा वो बच ग्ये छा। पर इबारि…..गर्जघाळी साफ-साफ ब्वल्येणू चा कि -‘ खबरदार! हम इनै-उनै कक्खि नि जाँ! अपड़ा गुठ्यार भित्र केर मा राँ! अगल-बगल कै अणजाण पर नि लगाँ। कैका समणी सुद्दि गिच्चू उफारी नि खस्याँ। हर घड़ि अपड़ि साफ-सफै कु ध्यान रखाँ।’ पर छां त आखिर हम मनखी छां। इन बि नि लगू कि हम अपड़ा समाज सि अलग-थलग छां। सैर बजारै बात अगर छोड़ बि द्याँ त हम मद्दि क्वी गौं का बीच मा त कति गौं कि बसागत सि दूर छां। हमारु फर्ज बणदू कि जु दूर छना हम वूं तक बि जाग देंदि राँ! फकत वूंका हाल चाल, दुख-तकलीफ हि नि पुछणा राँ! जथगा ह्वे साकु वूंकि मौ-मदद कर्दि राँ! वूंका चूल्हों पर आग जगणी च कि ना यिं बातौं बि पता कर्दि राँ!
अर एक बात हौर! जु भैर बिटि अपड़ा गौं-घौरु आणा छन वूंकू तैं बि हम भौं कुछ नि ब्वलाँ। ह्वे साकु त जब तक य अला-बला नि टलू हम अलग सि वूंकि खाण-प्येणै बिवस्था कराँ! यिं बात तैं बि हम याद रखाँ कि हम धरम्यळा मनखी छां। हमारा ओर-पोर मनखी हि क्या सबि जीब-जन्तू, पौंन-पंक्षी बि सुखी चऐणा ! दुन्या जणदि हमुन कनि-कनि खौरि खै ! भूख-तीस दबै ! कनि-कनि बिपदौं मा नि घबड़यां ! क्या घर-परिवार, गौं-गौळा, देस-परदेसौ हम हम यिं दौं इथगा खौरि नि खै सक्दां! अवा ! वूं तैं यु दिलासू दिलाँ कि तुमारि खैंची केर पर हम अटल छवां! अर वूं दगड़ा यिं बड़ि लड़ै मा अपड़ि छुटि सि जिमेदारि निभाणा छां!

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