सिंगोरी न्यूजः गुजरे तीन चार दिनों से उस तमाशे की तेजी कुछ ज्यादा ही महसूस की गई। खास तौर पर सोशल मीडिया पर। जिसमें सूबे के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को कुर्सी से हटा कर उनकी जगह नए निजाम को ताज पहनाया जाना था। जल्द ऐलान, कौन होगा नया सीएम इस तरह के स्लोगनों से वाॅल पट गई। तो दो नेताओं के बीच निजाम को लेकर सहमति तक दिखाई गई। और वो हैं केंद्र में एचआरडी मिनिस्टर रमेश पोखरियाल निशंक और संतों की दुनियां के चर्चित नाम सतपाल महाराज। कहीं तो सूबे के राज्य मंत्री डा धन सिंह रावत और यहां तक सुबोध उनियाल तक का नाम भी खूब जमकर उछला और उछाला गया। लेकिन हुआ फिलहाल कुछ नहीं।
किसी भी राज्य मंे सत्ता का परिवर्तन आम जन के हाथ में होता है और कई मायनों में हक में भी। लेकिन मुखिया परिवर्तन की स्थितियां वहां की राजनैतिक अस्थिरता का द्योतक हैं। उत्तराखंड के राजनैतिक दल, उनके नेता और यहां तक राजनैतिक जानकारी रखने वालों की मानसिकता की बात करें तो यह होता आया कि किसी भी मुखिया की ताजपोशी के दो दिन बाद ही उसके हटने हटाने की अटकलें, कयास और कई जगहों से प्रयास भी शुरू हो जाते हैं। राज्य स्थापना से ही ऐसे होते आया है। नित्यानंद से लेकर तिवारी खंडूरी, निशंक, विजय हरीश, त्रिवेंद्र ने जिस दिन ही सत्ता संभाली टांग खिंचाई भी उसी दिन से शुरू हो गई। जब तक कि स्वागत और माल्यापर्ण के रंग सुनहरे सपनों को पूरी तरह से रंगीन भी नहीं बना पाती कि परिवर्तन की चर्चाओं से गलियारे गूंजने लगते हैं। इन चर्चाओं के हकीकत होने के उदाहरण भी यहां हैं।
चलो पुरानी बातों को छोड़ हाल के दिनों की बात करते हैं। तीन वर्ष पूरे होने को हैं जब भाजपा ने सूबे की 70 विधान सभाओं में से 57 पर कमल खिलाने में कामयाबी हासिल की। यह बात भी किसी से छुपी नहीं है कि यह प्रचंड जनादेश भी मोदी मैजिक ही रहा। इस कहानी में कांग्रेस के बागियों का जिक्र करना ज्यादा मुनासिब इसलिए भी नहीं है क्योंकि वह कहीं भी ज्यादा भूमिका मेें ंदिख नहीं रहे। अगर दिखते जो जरूर करते। त्रिवेंद्र की सत्ता संभालते ही उनकी टांग खिंचाई भी शुरू हो गई थी।
हालांकि कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में गए संतो की दुनिया के महारथी सतपाल महाराज की तब भी छीछालेदारी हुई जब उनकी विधान सभा में चुनाव उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में दिखाकर लड़ा गया और जीत के बाद कुर्सी पर संघ के प्रिय त्रिवेंद्र बैठ गए। महाराज को कैबिनेट जरूर थमाया गया। लेकिन वह भी मिनिस्टर विद आउट पोर्टफोलियो की कहावत को चरितार्थ रहे हैं। अब तीन साल बाद बगैर किसी भूमिका के भी महाराज का जिक्र यहां इसलिए किया जा रहा है क्योंकि हाल के दिनों में उनके नाम को फिर से कई कलमकारों व सोशल मीडिया धुरंधरो नें सीएम की दौड़ में खूब दौड़ाया। महाराज होंगे उत्तराखंड के नए सीएम, एलान जल्दः सूत्र। एचआरडी मिनिस्टर और उनके बीच सहमति होनी बताई तक गई।
दूसरी सुबह हुई तो सोशल मीडिया का रंग पूरी तरह से बदला हुआ था। एचआरडी मिनिस्टर निशंक का एअर पोर्ट पर दून आते फोटो के साथ लिखा गया कि वह अचानक दून आ गए हैं। और त्रिवेंद्र को दिल्ली तलब किया गया है। सोशल मीडिया पर निशंक तो पूरी तरह फिर से छा गए। पता नहीं कहां यह खबरें उछली। पता चला कि सीएम त्रिवेंद्र बगैर किसी तनाव के हरिद्वार में कुभ मेले की तैयारियों का जायजा ले रहे हैं। और निशंक शनिवार रविवार या अक्सर अपने प्रदेश और संसदीय क्षेत्र में आते रहते हैं। यह बात भी बेहद सामान्य सी है।
प्रदेश में विधान सभा चुनाव के बाद जब से त्रिवेंद्र ने यहां की सल्तनत संभाली है उनका प्रदर्शन इससे पूर्व के मुख्यमंत्रियो ंसे बीस ही रहा। पहले संसदीय चुनावों में क्लीन स्वीप दिया। और उसके बाद नगर पालिका चुनाव प्रदर्शन पहले कई बेहतर रहा। हाल में हुए पंचायत चुनाव में अभूतपूर्व विजय। वर्तमान में तेरह जनपदों में से दस में भाजपा बैठी है। अजब यह है कि ब्लाकांे में भी भगवा ही लहरा रहा है। कौन से कारण हैं जिससे त्रिवेंद्र का ंिसहासन डोलता नजर रहा है।
रही बात हाल में हुए दिल्ली चुनाव में औंधे मुहं गिरने की तो उसकी गाज सिर्फ और सबसे पहले त्रिवेंद्र पर गिरेगी यह कौन सा राजनैतिक आंकलन है पता नहीं। इसे तो शाह या मोदी ही बात पायेंगे या फिर चर्चा में रहने वाले या फिर चर्चा करने और कराने वाले। लेकिन इतना जरूर छन कर आया है कि अंदरखाने उसी तरह का खेल चल रहा है जिस तरह पहले से चलता आया है। इस सब के बावजूद टप्पू के इस खेल में ज्यादा अंक त्रिवेंद्र के खाते में बताए जा रहे हैं। और महाराज इस बार फिर मोहरे की भूमिका में दिख रहे है।