सेल्फी कल्चर को धिक्कारता एक जज्बा

रमेश नेगी
उत्तरकाशी में बादल फटा, धुमाकोट के अंदरोली में जो बस खाई में गिरी आपदा आ गई। लेकिन जिसने भी सुना अपना सारा काम काज छोड़ कर दौड़ा चला आया मदद के लिए। और सुखद रहा है कि यहां किसी ने दर्द से कराहते या मृत हो शवों की तस्वीरें या वीडियो नहीं बनाए। जिससे जो हो सका मदद की। शहर के सेल्फी कल्चर के मुहं पर यह एक वह तमाचा है जिससे उन्हें वक्त रहते सबक लेना चाहिए। ग्रामीणों के जज्बे के आगे धिक्कार है इस मोबाइल कल्चर पर, जिसने संवेदनाएं मार दी हैं। मानवता को जलाकर राख कर दिया है।
अक्सर यह देखने में आता है कि कहीं भी कोई घटना हो जाए तो उसमें तमाशबीन ज्यादा होते हैं। तमाशबीन ही नहीं वहां छायाकार, पत्रकार जैसी प्रवृति के लोग अधिक दिखते हैं। घटना चाहे कितनी ही हृदय विदारक क्यों नहीं है। घटना होेते ही सटाक से मोबाइल निकालेंगे और शुरू हो जाएंगे। जबकि दुर्घटना पीड़ितों को थोड़े प्रयासों से बचाया जा सकता है। लेकिन यदि वहां सौ की भीड़ है और पीड़ितों में अपना कोई नहीं है तो शायद ही कोई ऐसा होगा जो मदद के लिए आगे आए। हरेक की यही कोशिश होगी कि वह ज्यादा से ज्यादा हृदयविदारकता को अपने मोबाइल के कैमरे में कैद कर सके। उनकी चाहत साफ बताती है कि वह तड़फते हुए इंसान का लाइव वीडियो बनाना चाहते हैं। ताकि उनका वीडियो हिट हो जाए। लाइक, कमेंट शेयर हो, उसका नाम आए कि मौत का लाइव वीडिया फलां ने सोशल मीडिया पर अपलोड किया है। शहरी सभ्यता के लोग और इस सभ्यता की नकल कर उन्नति का दिखावा करने कस्बाई लोगों में यह प्रवृति सिर पर चढ़ कर बोल रही है। सड़क दुर्घटना में चोट खाए घायल सड़क पर तड़फते रहेंगे लेेकिन उन्हें कोई मदद नहीं करेगा क्योंकि उन्हें तो सेल्फी लेनी है। घटनाक्रम को लाइव दिखाकर अपना चेहरा भी चमकाना है। शहरी सभ्यता में ऐसे नजारे आम से हैं।
पिछले दिनों में एक सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें जंगल में भालू एक व्यक्ति पर हमला कर रहा है। बहुत वीभत्स दृष्य था। मेरे ख्याल से वह एनीमेट किया था। क्लिप में भालू काफी देर तक उसके चेहरे को नोचता है। चेहरे से सिर तक चीथड़े जैसा कर देता है। और वहां खड़े लोग किनारे खड़े होकर वीडिया बना रहे होते हैं। एक सज्जन वह वीडियो दिखा रहे थे। हमें भी वह वीडियो इसलिए दिखाया गया कि वह वीडियो उस ग्रामीण क्षेत्र का बताया जा रहा था जहां से हम आते हैं। देखा तो पहली नजर में हमने वीडियो को ही नकार दिया। लेकिन जो वह वीडियो दिखा रहे थे और ग्रुप में शेयर कर रहे थे वह नहीं माने। उन्होंने हमारी बात को ही नकार दिया। यानी उनका वीडियो सही है
उन्होंने कहा यह वीडियो राठ क्षेत्र का है। मैंने कहा राठ क्षेत्र में इस तरह का सेल्फी कल्चर का चुतियापा कहीं भी नहीं है। वहां के लोग सौहार्द रखते हुए एक दूसरे पर जान छिड़कते हैं। साहसी इतने होते हैं कि भालू कि इतनी औकात नहीं कि दिन दहाड़े गांव या गांव वालों के नजदीक आने की भी हिमाकत कर दे। हालांकि बाद में हम ही सही निकले सोशल मीडिया पर गरजने वाले सेल्फी कल्चर वाले झूठे ही साबित हुए।
और वह करते भी क्या। उन्होंने गांवों का सौहार्द तो नहीं देखा उन्होंने शहर का सेल्फी कल्चर देखा है। इन दिनों पूरा पहाड़ कुदरत के प्रकोप से जूझ रहा है। यहां दूरस्थ क्षेत्र धुमाकोट में एक बस गहरी खाई दुर्घटनाग्रस्त हो गई। उसमें एक व्यक्ति की मौके पर ही मौत हो गई। कहीं बज्रपात तो कहीं अतिवृष्ठि ने तबाही मचाई। सुबह लोग अपने खेतीबाड़ी के कामों की तैयारी में थे। इतने में आपदा दुर्घटना का संदेश मिल गया। सबने अपने रोजमर्रा के जरूरी काम छोड़े और मदद के लिए दौड़ पड़े।
यहां तक कई जगहों पर स्कूलों के नव युवा छात्र छात्राओं ने भी राहत और बचाव कार्य में सहयोग किया। अब शहर और गांव के लोगों की मानसिकता में अंतर देखिए। यह भी सच है कि गांवों में होती विपदाओं में पुलिस या प्रशासन का राहत और बचाव दल तब ही पहुंचता है जब स्थानीय लोग सब कुछ कर चुके होते हैं। शनिवार की रात हुई दुर्घटना में भी यही हुआ। लेकिन यहां किसी ने दुर्घटना के मृतकों व बस या घायलों का वीडियो नहीं बनाया। मौके पर अपनी मौजूदगी के लिए सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर सोशल वर्कर बनने का सपना नहीं पाला। कोई अपने घर से मरीजों को अस्पताल पहुंचाने के लिए खाट लाया तो चेयर में उठाने की बात करता। मदद के लिए कोई बगैर चप्पलों के ही चल निकला तो कोई नंगे पांव बनियान में ही। इतना ही नहीं महिला वर्ग भी यहां किसी भी सूरत में पीछे नहीं रहता। लगातार बरसात में महिलाएं भी बचाव में छाते लेकर दौड़ पड़ी। जिससे जो बन सका उन्होंने किया। अस्पताल पहुंचे घायलों को वहां किस तरह का उपचार मिलता है यह तो व्यवस्थाओं का कार्य और अधिकार क्षेत्र में आता है लेकिन जो दायित्व ग्रामीणों का था उन्होंने उसे पूरी सिद्दत के साथ निभा दिया। ग्रामीणों के इस जज्बे ने शहर में बढ़ते सेल्फी कल्चर पर हर शहरवासी खुद ही जलालत महसूस करेगा।

About The Singori Times

View all posts by The Singori Times →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *