निशंक, तीरथ व धनसिंह में मची होड़ से उपजता डऱ

सिंगोरी न्यूजः पौड़ी जनपद के सुमाड़ी में हाल ही में एनआईटी का शिलान्यास दुबारा से हुआ। इस बार भाजपा सरकार के बडे लश्कर यहां शिला पूजन किया तो पूर्व में यहां कांग्रेस सरकार के मुखिया भी कुछ इसी तरह कर चुके हैं। बहरहाल शिलान्यास जो भी करे अच्छी बात है कि राष्ट्रीय स्तर का एक संस्थान पहाडत्र में होना चाहिए। वर्तमान में केंद्र और सूबे की सत्ता में बैठी सरकार के नेताओं में एनआईटी की स्थापना या यूं कहें कि वापसी को लेकर जिस तरह से होड़ मची है उससे एक तरह का डर सा पैदा होता है। डर यह कि कहीं यह बड़ा संस्थान राजनीति का अखाड़ा बना कर ना रह जाए।
पूर्व मे भी एनआईटी सुमाड़ी में ही स्वीकृत हुआ था। श्रीनगर में इसके लिए अस्थाई व्यवस्था की गई। लेकिन राजनैति के नफा नुकसान के चलते हुआ यह कि पहाड़ में आए इस संस्थान को अन्यत्र शिफ्ट करने के परपंच हो गए। करीब करीब इसी दरमियान एसएसबी का ट्रेनिंग संेटर भी चुपचाप श्रीनगर से अन्यत्र शिफ्ट हो गया। क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता अनिल स्वामी, मोहन काला जैसे कई लोग हैं जो जनहित के तमाम मसलों पर संघर्ष करते रहे हैं। सड़क से लेकर अदालत तक का सफर इन लोगों ने नापा। और पूरी ताकत के साथ नापा। अदालत ने भी जनहितों का संज्ञान लेते हुए उनका ही पक्ष लिया। नेताओं के प्रयास, समाज सेवियों की मेहनत और सड़कों पर उतरे आम जन का आक्रोशित उद्घोष इन सबको श्रेय जाता है एनआईटी की वापसी का। लेकिन यहां हो क्या रहा है।
केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री डा रमेश पोखरियाल निशंक के हाथ में ही यह इन दिनों से यह सब कुछ है। एनआईटी को लेकर निसंदेह ही उन्होंने वह सब किया जिसकी उनसे अपेक्षा की जाती है। डा निशंक काबिल तो हैं ही पहाड़ को लेकर अपनत्व भी स्वाभाविक सी बात है।
उन्होंने तो अपनी जिम्मेदारी का बखूबी निर्वहन किया लेनिक उनके समर्थकों ने श्रेय को हथियाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सोशल मीडिया में वो धमाल मचा कि पूछो नहीं। मानो कुछ चीज छूट रही हो।

गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत ने भी एनआईटी का मसला संसद में उठाया था। उनकी वह आवास सोशल मीडिया पर भी खूब वायरल हुई। चलो अच्छा है। श्रेय लेने की हदें तो तब पार हो गई जब कुछ न्यूज पोर्टल व पत्र पत्रिकाओं ने यह तक लिख दिया कि निशंक और तीरथ की बदौलत लौटी सुमाड़ी में एनआईटी। तो तब क्षेत्रीय विधायक और वर्तमान में सूबे सहकारिता राज्य मंत्री डा धन सिंह रावत भी कहां पीछे रहने वाले थे। उन्होंने श्रीनगर में पत्रकार वार्ता कर यह कह दिया कि उन्होंने एनआईटी के लिए जो प्रयास किए हैं उसे कोई सूचना अधिकार के तहत मांग सकता है। यानी उनके प्रयास भी विधिवत व दस्तावेजी हैं। जब मंत्री और सांसद इस श्रेय को बांटने के बजाए हथियाना चाह रहे हैं तो ऐसे में समाज सेवियों के प्रयास धुंधलाते ही नजर आएंगे।
जानकार इस बात को लेकर भी चिंतित हैं कि कहीं राष्ट्रीय स्तर का यह संस्थान राजनीति का अखाड़ा बन कर न रह जाए। श्रेय की लालसा में अखाड़ा बने संस्थानों के यहां और और भी उदाहरण मिल जाएंगे। तब तो यह पौड़ी जनपद से लेकर सूबे का और सूबे लेकर देश का बडा नुकसान होगा। निशंक, तीरथ, धनसिंह के साथ ही उनके अनुयायियों को भी आम जन की ओर ऐसी कृपा दृष्ठि रखनी होगी ताकि श्रेय की होड़ में बड़ा नुकसान ना हो।

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