सिंगोरी न्यूजः कोरोना वायरस का संक्रमण एक महामारी है। वैश्विक विपदा है। जिस तरह से आपदा की स्थितियों में समाज विरोधी तत्व अपने निजी स्वार्थों के लिए सक्रिय हो जाते हैं, ठीक वैसे ही कोरोना काल में पहाड़ी गांवों के सामाजिक ताने बाने व आपसी सौहार्द को छिन्न भिन्न करने के लिए भी सोशल मीडिया के धूर्त सकिय्र हो गए हैं। प्रवासियों के लौटने का जिस तरह से वीडियो क्लिप बनाकर अपशब्द कहे जा रहे है, वीडिया को सोशल मीडिया पर अपलोड किया जा रहा है वह पूरी तरह से प्रायोजित है। वह पहाड़ की संस्कृति और संस्कारों में कहीं है नहीं, यह सब धूर्त लोगों की करामात है।
जब से देश में कोरोना का खतरा हुआ। रोकथाम के प्रयासों के लिए लाॅकडाउन जैसे कदम उठे। और उसके बाद पूरे देश भर में प्रवासी लोगांे ने अपने घरों का लौटना शुरू किया तो कई जगहों से इस तरह की सूचनाएं आई कि ग्रामीणों ने अपने घरों को लौट रहे प्रवासियों को घरों में नहीं घुसने दिया। लेकिन उत्तराखंड के पहाड़ी गांवों में ऐसा कहीं भी नहीं देखने को मिला। लोग अपने घरों को लौटे तो कहीं भी वैमनस्य की भावना नहीं देखी गई। हालांकि क्वारंटीन जैसी एहतिहात तो स्वाभाविक और जरूरी भी थी। प्रवासी जो लौटे उसकी सूचना प्रशासन को दी गई। पूरी पूछताछ के बाद जरूरी कदम उठाए और फिर सब सामान्य।
लेकिन इसी बीच सोशल मीडिया में कुछ वाीडियो अपलोड हुए जिसमें महिलाएं अपनी गढ़वाली में लौटने वाले प्रवासियों को गालियां बक रही हैं। कोई दरांती से काटने की धमकी दे रही हैं तो जूतों से जुतियाने की बात हो रही है। जिस तरह गंदे ढंग से अपशब्दों से यह वीडियो बने उससे आम समाज हतप्रभ भी हुआ और आक्रोशित भी। कई प्रवासी लोगांे ने इस पर प्रतिक्रियाएं दी तो नाराजगी व्यक्त करने में कई वो लोग भी शामिल थे जो गांवों में ही रहते हैं। सभी ने इस मानसिकता को कतई गलत ठहराया। ऐसा न करने की हिदायत भी दी। लेकिन किसी ने यह नहीं सोचा कि जो वह कह रही हैं वह खुद तो कुछ नहीं कह रही हैं। यह सब उनसे कहलवाया जा रहा है। उन्हंे नहीं मालूम कि वह क्या कह रही हैं वह तो अपने सीधेपन में भोलेपन में मजाक के तौर पर वह सब कह रही हैं। और मान लो कोई कह भी रहा है तो यहां ऐसा संभव ही नहीं है कि किसी को उसके घर आने से कोई रोक के दिखा दे।
यहां लोग आपसी सौहार्द और भाईचारे के साथ रहते हैं। जिस तरह की बनावटी मानसिकता सोशल मीडिया के जरिए समाज में रखने का प्रयास किया गया उसमें जरा भी सच्चाई तलाशने मूर्खता ही होगा। हमारे पहाड़ों में इस तहर वैमनस्यता का जहर घोलना अनुचित है। इससे बचा जाना चाहिए।