प्रदेश कांग्रेस में फिर सुलगने लगा चेहरे का कलह, बेअसर हुई ‘देवेंद्र’ की पिलाई घुट्टी

सिगोरी न्यूजः उम्मीद थी कि कांगे्रस के नए और युवा प्रभारी देवेंद्र यादव की पिलाई घुट्टी प्रदेश कांगे्रस के नेताओं को एकजुट करने में कामयाब होगी, लेकिन हालात ऐसे लग नहीं रहे। यहां चुनावी चेहरे को लेकर बयान बाजी शुरू हो गई है। राज्य सभा सांसद प्रदीप टम्टा ने अपने एक बयान में कहा कि 2022 के विधान सभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ही प्रदेश में पार्टी का चेहरा होने चाहिए। कहा कि सूबे में भी हरियाणा जैसी चूक हुई तो दिक्कत होगी। वहीं अन्य नेताओं का मानना है कि यह केंद्रीय नेतृत्व का अधिकार क्षेत्र है।
बता दें कि जब कांग्रेस के प्रभारी देवेंद्र यादव ने प्रदेश में आकर उत्तराखंड में जर्जर हो रहे कांग्रेस के हालातों को समेटने का प्रयास किया। पार्टी नेताओं को एकत्र किया और संघर्ष में एक होने का पाठ भी पढ़ाते हुए उसके नफा और नुकसान भी समझाए। इसी दौरान मुख्यंमंत्री त्रिवेंद्र ंिसह रावत को लेकर हाईकोर्ट एक सीबीआई जांच का आदेश आया तो कांग्रेस को बिन मांगे ही जैसे मोती मिल गए। प्रभारी की मौजूदगी में पार्टी ने एकजुटता दिखाई। पार्टी में अलग अलग धु्रव मानो एक से हो गए। प्रदेश सरकार के खिलाफ जमकर प्रदर्शन हुआ। लेकिन उनकी यह खुशी ज्यादा देर तक नहीं चली। मुख्यमंत्री की इस्तीफे की मांग कर रही कांग्रेस का मुंह पर सुप्रीम कोर्ट की रोक ने ताला लगा दिया। खैर हुआ। लेकिन उम्मीद यह जताई जा रही थी कि चलो इसी बहाने कांग्रेस में आपसी दूरियां खाई कुछ कम हो गई और धीरे धीरे और कम हो जायेगी। लेकिन गहराई से पड़ताल करने के बाद राजनीति के जानकार मानते हैं कि जिस तरह से कांग्रेस में बिखराव है वह जल्दी से पटने वाला नहीं है। प्रभारी के लौटने के ठीक बाद राज्य सभा सांसद ने यह बयान दे दिया उसका लब्बो लुआब यही है कि 2022 में हरीश रावत ही पार्टी की नैया पार लगा सकते हैं अन्यथा हरियाणा का उदाहरण तो सबके सामने है। उन्होंने कहा कि उनकी और एक आम कांग्रेस कार्यकर्त्ता की यही सोच है कि हरीश रावत ही उत्तराखंड में पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हैं।
राज्य सभा सांसद के इस बयान के कांग्रेस का घमासान बाहर तो नहीं लेकिन अंदर ही अंदर फिर से सुलगने लगा होगा ऐसा स्वाभाविक भी है। क्योंकि चेहरे की लड़ाई के कारण ही यहां गुटों में तलवारें खिंची हैं। नतीजा यह है कि उत्तरांड में राज करने वाली पार्टी अब विधान सभा में 11 सदस्यों पर ही सिमट गई है। निश्चित रूप से सांसद का यह बयान कांग्रेस के अंधरूनी कड़वाहट को साफ बता रही है। जो माना जा रहा था कि प्रभारी के आने से कुछ कम हो जायेगी। लेकिन ऐसा लगता नहीं कि हुआ होगा। photo file

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