सिंगोरी न्यूजः मातशक्ति कहीं भी पुरूषों से पीछे नहीं है। मदद का जज्बा और साहस उनमें बराबर का है। या यूं कहें पुरूषों से अधिक तो इसमें कोई दो राय भी नहीं होनी चाहिए। सूबे के अधिकांश ग्रामीण इलाकेे पलायन की जद में हैं। ऐसे में यहां की सारी जिम्मेदारी महिलाओं के कांधे पर है। अब देखिए ना। बागेश्वर जनपद का एक गांव है। समड़ड। यहां के लोगों को सड़क तक जाने के लिए पच्चीस किमी पैदल चलना पड़ता है। गांव हरा भरा तो है लेकिन अधिकांश युवा रोजगार के चलते पलायन किए हैं। गत दिवस यहां एक युवक एक हादसे में घायल हो गया तो डोली के सहारे सड़क तक पहुंचाने के लिए महिलाएं भी कंधे से कंधा मिला मदद करने आई। पच्चीस किमी पैदल चलने के बाद मरीज को अस्पताल पहुंचाया गया।
समडड इलाके की बात करें तो रोड हेड तक जाने के लिए 25-30 किमी का पैदल सफर करना पड़ता है। स्वास्थ्य सुविधा के नाम दूर तक कहीं कुछ नहीं है। बोरबलड़ा के समड़ड तोक के रहने वाले 32 वर्षीय खिलाफ सिंह उस वक्त गिर कर घायल हो गए जब वह घर के उपर जंगल में जानवरों के लिए घास लेने गए थे। सब लोग पहले तो घबरा गए कि आखिर घायल को इतने लंबे सफर में कैसे अस्पताल पहुंचाया जाए।
इस गांव की बात करें तो यहां या तो महिलाएं है या फिर बुजुर्ग या बच्चे हैं। अधिकांश युवा रोजगार के लिए पलायन कर गए हैं। घायल को पच्चीस किमी दूर चंद पुरूषों के वश में तो था नहीं।
गांव के दया देवी, प्रीति देव, चंद्रा देवी, सावित्री देवी, बबीता दानू के जज्बे की दाद देनी पड़ेगी कि उन्होंने घायल को अस्पताल पहुंचाने में पूरी मदद कर पच्चीस किमी पैदल सफर तय किया। हरीश सिंह, गंगा सिंह, दयाल सिंह, अर्जुन सिंह के साथ बारी बारी से डोली को कंधा देकर मरीज की जान बचाई।